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________________ १०८ आमंत्रण आरोग्य को हो ? ऐसा करना अच्छा नहीं है | थोड़ा आगे जाओ और कचरा वहां डालो, जहां किसी का मकान न हो । तुम अपने घर से निकले और मेरे घर के सामने कचरा डाल गए, इससे क्या लाभ हुआ ?' उसने कहा- 'जहां स्थान मिला, वहां डाल दिया । मैं क्या कर सकता हूं?' एकदम रूखा उत्तर दिया । उसे एक बार समझाया, दो बार समझाया, तीन बार समझाया । वह नहीं माना । उस स्थिति में प्रतिक्रिया पैदा होना या प्रतिक्रियात्मक हिंसा का भाव पैदा होना स्वाभाविक है | एक है क्रियात्मक हिंसा और दूसरी है प्रतिक्रियात्मक हिंसा । प्रतिक्रिया का सिद्धांत है-- ईंट का जवाब पत्थर से दो । यह क्रियात्मक सिद्धांत नहीं है, प्रतिक्रियात्मक सिद्धांत है । जब व्यक्ति के मन में प्रतिक्रिया पैदा हो जाती है तब वह इस प्रकर के सिद्धांत का निर्माण करता है ।। उस व्यक्ति के मन में भी प्रतिक्रिया पैदा हो गई । उसने सोचा, यह ऐसे नहीं मानेगा । उसने भी कूड़े-करकट के साथ अपने घर की सारी गंदगी उसके घर के सामने डाल दी । यह हिंसा के प्रति हिंसा है | यह है परिस्थिति से उत्पन्न विवशताजनित हिंसा, प्रतिक्रियात्मक हिंसा । हिंसा : प्रति हिंसा परिस्थिति से पैदा होनेवाली प्रतिक्रिया अहिंसा के सामने बहुत बड़ा विघ्न है । सामाजिक जीवन में इस प्रकार की स्थितियां बहुत बनती हैं | साम्यवाद की कल्पना या क्रियान्विति सामने आई, तब नक्सली बने । अन्यान्य भी जो रक्त-क्रांतियां या हिंसक घटनाएं हुईं, उन सबके पीछे प्रतिक्रियात्मक स्थिति हो रही है । सामाजिक जीवन में जहां इतनी विषमता होती है कि एक व्यक्ति बहुत शानदार ढंग से जीवन जीता है, फिजूलखर्ची करता है, अनावश्यक भोग करता है और धन का अतिरिक्त ढेर लगा लेता है और दूसरे व्यक्ति को खाने को रोटी नहीं मिलती, उस स्थिति में प्रतिक्रियात्मक हिंसा को बल मिलता है | यह बहुत स्वाभाविक बात है | जहां भी विश्व के किसी भी कोने में, किसी भी अंचल में, इस प्रकार की घटनाएं घटित हुई हैं, उन सबकी पृष्ठभूमि में प्रतिक्रियात्मक हिंसा काम करती रही है । एक व्यक्ति के साथ बहुत अन्याय हुआ | उसकी कहीं सुनवाई नहीं हुई और वह डाकू बन गया । इतना क्रूर डाकू बना कि उसने पचासों व्यक्तियों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003069
Book TitleAmantran Arogya ko
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size9 MB
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