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________________ नई अर्थनीति के पेरामीटर केन्द्रीकरण : विकेन्द्रीकरण केन्द्रीकरण आज की अर्थनीति का मुख्य आधार है । यदि हम महावीर और गांधी को उस मंच पर लाएं तो एक समन्वय करना होगा कि केन्द्रीकरण के साथ विकेन्द्रीकरण की व्यवस्था भी चले। केन्द्रीकरण और विकेन्द्रीकरण—दोनों का योग होगा तभी बात बनेगी। कोरे केन्द्रीकरण ने बेरोजगारी को बहुत बढ़ावा दिया है, समस्याएं पैदा की हैं । केन्द्रीकरण के साथ विकेन्द्रीकरण भी होना चाहिए। यदि ऐसा होता है तो उसमें महावीर भी खड़े हैं, गांधी भी खड़े हैं। केन्द्रीकरण को भी सर्वथा मिटाया नहीं जा सकता। उसका भी एक संतुलित उपयोग आवश्यक है। संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका आज संसाधनों पर नियंत्रण अपने-अपने राष्ट्र का है। अगर पैट्रोल अरब देशों के पास है तो उस पर उनका नियंत्रण है। अगर बहुत सारे खनिज अमेरिका में हैं, तो उन पर उसका नियंत्रण है। संयुक्त राष्ट्र संघ की अब तक जो भूमिका रही है, वह केवल एक शांति और सामंजस्य बिठाने की भूमिका रही है। अगर संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्था को जागतिक अर्थनीति की भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित किया जाये और वह इस स्थिति में आए कि अर्थनीति का निर्धारण कर सके और संसाधनों पर नियंत्रण कर सके तो वर्तमान की समस्या का कोई समाधान मिल सकता हैं। वैश्विक अर्थनीति को सूत्र एरिकफ्रोम ने वर्तमान की व्यवस्था को ठीक करने के लिए, उसमें परिवर्तन लाने के लिए कुछ सूत्र सुझाए हैं, जो वैश्विक अर्थनीति के लिए बड़े उपयोगी बन सकते हैं। उनका एक सूत्र है—क्रोध, लोभ, घृणा और मोह को कम किया जाये। यह बात आध्यात्मिक और उपदेशात्मक बात जैसी लगती है किन्तु इतनी छोटी बात नहीं है। इसमें एक बहुत बड़े सत्य का उद्घाटन है। संतुलित अर्थव्यवस्था इन आवेगों को संतुलित किये बिना कभी संभव नहीं बनेगी। लोभ का संवेग या इमोशन प्रबल है, तो कोई भी अर्थव्यवस्था संतुलित बन नहीं सकती, चाहे कितनी ही नीतियां क्यों न निर्धारित कर ली जाएं । घणा, हीन-भावना आदि का संवेग प्रखर है तो कोई भी अर्थनीति कारगर नहीं हो सकती। संवेग की समस्या भगवान् महावीर ने जिन सत्यों का प्रतिपादन किया, उनमें से एक सत्य यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003067
Book TitleMahavira ka Arthashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2007
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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