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________________ महावीर का अर्थशास्त्र . गांधी का एक स्थूल लक्ष्य था-स्वराज या स्वतंत्रता की प्राप्ति । यह राजनीतिक लक्ष्य था किन्तु मूल लक्ष्य नहीं था। उनका मूल लक्ष्य था-ईश्वरीय साक्षात्कार या सत्य को पाना, सत्य तक पहुंच जाना। मार्क्स और केनिज का लक्ष्य ___ मार्क्स और केनिज-इन दोनों का एक लक्ष्य रहा सुख-संतुष्टि । समाज को सुख या सेटिस्फेक्शन मिले । इतना अर्थ हो जाये कि गरीबी मिट जाये, सुख मिले । किन्तु सुख के पीछे जो आ रहा है, उस पर विचार नहीं किया। भूखे को रोटी मिली, सुख मिला, किसी नंगे को कपड़ा मिला, सुख मिला । खुले आसमान के नीचे सोने वाले को छत मिली तो सुख मिला, किसी बीमार को दवा मिली, सुख मिला। जहां आर्थिक प्रयोजन हो, वहां इससे आगे जाया नहीं जा सकता। अगर अध्यात्म का दर्शन उनके सामने होता तो सुख की कल्पना कुछ दूसरी होती। किन्तु आर्थिक जगत में यही चरम सीमा है। अर्थशास्त्र की सीमा को पार कर वे थोड़ा और गहरे चिंतन में जाते तो शायद उनकी सुख की धारणा भी बदल जाती। सुविधा और सुख ' एक भ्रान्ति पैदा हो गई—सुख और सुविधा को हमने एक मान लिया। इस भ्रान्ति को न मार्क्स तोड़ सके। न केनिज तोड़ सके। अगर उनका चिंतन यह होता-हम अपनी अर्थशास्त्रीय अवधारणाओं और अर्थव्यवस्था के विकास के द्वारा मनुष्य को सुविधा उपलब्ध करा सकते हैं, सुख के लिए उन्हें और आगे खोज करनी है तो आज की स्थिति कुछ दूसरी होती । न इतनी हिंसा होती, न इतने आराध होते, न इतनी मानसिक विक्षिप्तता होती। उन्होंने सुविधा और सुख को एक ही मान लिया। जिसको रोटी नहीं मिलती थी, उसे रोटी मिली तो सुविधा हो गयी, किन्तु उसे सुख भी मिला, यह कहना कठिन है क्योंकि सुख संवेदन के साथ जुड़ा होता है और रोटी भूख के साथ जुड़ी होती है। भूख मिट गयी तो समझें एक व्यथा मिट गयी, किन्तु सुख हुआ, यह तो नहीं कहा जा सकता। एक करोड़पति या अरबपति आदमी रोटी खा रहा है और साथ में दुःख भी भोग रहा है। दुःख भी खा रहा है वह रोटी के साथ । रोटी खाते समय फोन आ गया। अमुख स्थान पर इतना घाटा हो रहा है, दुर्घटना में इतना नुकसान हो गया है, बस यह सुनते ही वह दुःखी बन जायेगा। रोटी सुख का साधन होती तो वह दु:खी नहीं बनता। हम यह मान कर चलें-रोटी भूख शान्त करने का साधन है, सुख का साधन नहीं । मार्क्स और केनिज अगर इस चिंतन में स्पष्ट होते तो सचमुच आज स्थिति भिन्न होती। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003067
Book TitleMahavira ka Arthashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2007
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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