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________________ महावीर का अर्थशास्त्र से विचार किया। महावीर और गांधीजी की दृष्टि से विचार करें तो और भी बहुत सारी बातें उत्पादन से हट जाएंगी। महावीर ने उत्पादन के संदर्भ में तीन निर्देश दिए • अहिंसप्पयाणे—हिंसक शस्त्रों का निर्माण न करना . असंजत्ताहिकरणे-शस्त्रों का संयोजन न करना। • अपावकम्मोवदेसे-पाप कर्म का, हिंसा का प्रशिक्षण न देना। ये तीन निर्देश अर्थशास्त्र की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। पहला निर्देश है हिंसक अस्त्रों का निर्माण उत्पादन की सूची से हटना चाहिए। व्रती समाज के लिए तो यह अनिवार्य था कि वह शस्त्रोपादन नहीं कर सकता। वह केवल निर्माण ही नहीं, हिसंक शस्त्र का विक्रय भी नहीं कर सकता था। आज तो यह बहुत बड़ा व्यवसाय बन चुका है। अरबों-खरबों डालर के अस्त्र-शस्त्रों का क्रय-विक्रय हो रहा है। इनके निर्माण में जोरदार प्रतिस्पर्धा चल रही है। आधुनिक अर्थशास्त्र में शोषण की जो बात कही जाती है, उसका एक बड़ा रूप है खला बाजार। यह फ्री मार्केट आज शोषण का अड्डा बन गया है ।शस्त्रों का भी खुला बाजार है। जहां चाहें, शस्त्र खरीद लें। लाइसेंस प्रणाली कारगर सिद्ध नहीं हो रही है। कुछ राष्टों में तो लाइसेंस की जरूरत भी नहीं है। यह शस्त्र-निर्माण और शस्त्र-विक्रय व्रती समाज का सदस्य नहीं कर सकता। दूसरा निर्देश है शस्त्र के पुों का संयोजन न करना। व्रती समाज का सदस्य शस्त्रों के पुर्जी का आयात-निर्यात न करे, उन्हें जोड़कर तैयार भी न करे। तीसरा निर्देश है—पाप कर्म का उपदेश न देना। हिंसा का, युद्ध का प्रशिक्षण देना भी एक व्रती के लिए वर्जित था। आज की स्थिति देखें। हिंसा का प्रशिक्षण देने के लिए ऐसे स्कूल खोले गए हैं, जहां आंतकवाद का प्रशिक्षण दिया जाता है, उसकी सूक्ष्म तकनीक सिखाई जाती है । कैसे आंतक के द्वारा पूरे समाज और राष्ट्र को भयभीत किया जा सकता है, इसकी ट्रेनिंग दी जाती है । इस संदर्भ में महावीर ने व्रती समाज के लिए जो विधान किए, वे अहिंसा और शान्ति के अर्थशास्त्र की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। कर्मादान - उद्योग के संदर्भ में भी महावीर ने कुछ सूत्र दिए। गांधीजी ने बड़े उद्योगों का विरोध किया। महावीर ने अल्पेच्छा और अल्पारंभ यानी विकेन्द्रित नीति का सूत्र सामने रखा। केन्द्रीकरण के विषय में महावीर ने कहा- यह हिंसा को बढ़ावा देती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003067
Book TitleMahavira ka Arthashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2007
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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