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________________ विकास की अर्थशास्त्रीय अवधारणा उपेक्षा मनुष्य की . आधुनिक अर्थशास्त्र का दृष्टिकोण है—निजी लाभार्जन, मनुष्य की प्रकृति की उपेक्षा और केवल लाभ की उपेक्षा । जिस वस्तु में कोई लाभ नहीं, वह आज की अर्थशास्त्रीय दृष्टि से बिल्कुल व्यर्थ है। महत्त्व है बाजार का, वस्तु का कोई मूल्य नहीं है। मनुष्य की प्रकृति की बिल्कुल उपेक्षा की गई। व्रती समाज में मनुष्य की प्रकृति को महत्त्व दिया गया। यह दोनों में दृष्टिकोण का बड़ा अन्तर है। अर्थशास्त्र का योगदान ____ आधुनिक अर्थशास्त्र ने समस्याओं को समाधान नहीं दिया है, यदि यह कहें तो एक एकांगी दृष्टिकोण होगा। महावीर को समझने वाला, कभी एकांगी दृष्टिकोण से विचार नहीं करता। इसमें कोई सन्देह नहीं कि आधुनिक अर्थशास्त्र की कुछ अवधारणों ने समाज की कुछ समस्याओं को सुलझाया है और गरीब को भी कुछ राहत दी है। किन्तु जितनी राहत दी है, उतनी ही दूसरी समस्याएं पैदा कर दी हैं। तटस्थ चिंतन करें तो यह स्वीकार करने में कोई कठिनाई नहीं होगी कि वर्तमान अर्थशास्त्रीय अवधारणाओं ने हिंसा को भी प्रोत्साहन दिया है। अहिंसा का अर्थशास्त्र पूज्य गुरुदेव जैन विश्वभारती के प्रांगण में विराज रहे,थे । अजमेर विश्व विद्यालय के उपकुलपति डॉ० कान्ता आहूजा आए। वार्तालाप के प्रसंग में हमने कहा-हम चाहते हैं अहिंसा का अर्थशास्त्र । उन्होंने कहा-यह कौन-सा अर्थशास्त्र होगा? अर्थशास्त्र की तो जन्म ही हिंसा से होता है । उसमें अहिंसा की बात कहां से आएगी?' हम इस सचाई को समझें केवल गरीबी को मिटाने वाला अर्थशास्त्र ही हमारे लिए उपयोगी नहीं है। हमारे लिए वह अर्थशास्त्र भी उपयोगी है, जो गरीबी को मिटाए और साथ-साथ हिंसा का संवर्द्धन भी न करें । आर्थिक समृद्धि और अहिंसा की समृद्धि दोनों की समन्वित प्रणाली की आज अपेक्षा है । महावीर ने व्रती समाज की जी कल्पना दी, उसमें इस प्रणाली के लिए पर्याप्त तत्त्वे मिलते हैं। उन तत्त्वों के द्वारा इस समन्वय को पूरा किया जा सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003067
Book TitleMahavira ka Arthashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2007
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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