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________________ महावीर का अर्थशास्त्र पाइपों में शरण लेते थे। कोई मकान नहीं था, बड़े-बड़े पाइपों में लोग रैन-बसेरा करते थे। आज तो वहां भयंकर गरीबी और भुखमरी की सी स्थिति बनती जा रही है। खाने की चीजों के लिए लम्बी क्यू लगती है। यदि प्रति व्यक्ति आय समान होती, तो समस्या का समाधान होता किन्तु वैसा हुआ नहीं। गांधीजी ने कहा था-'आर्थिक समानता का आदर्श आदमी कभी प्राप्त नहीं कर सकेगा। क्योंकि वैयक्तिक क्षमता भिन्न-भिन्न है, योग्यता भिन्न-भिन्न है। हर व्यक्ति इस बिन्दु पर पहुंच नहीं सकता।' स्वार्थ को उभारने का परिणाम यह आया-आज दुनिया की सारी पूंजी कुछ हजार लोगों के हाथों में ही केन्द्रित हो गई हैं। इतने बड़े-बड़े धनी बन गए हैं कि सिवाय प्रतिष्ठा और झूठे अहं के पोषण के उनकी सूची में कुछ है ही नहीं । दुनिया का प्रथम नम्बर का धनी, द्वितीय नम्बर का धनी और तृतीय नम्बर का धनी-बसयही उनकी सूची है। इसलिए प्रति व्यक्ति आय वाली बात भी जटिल बनती जा रही है । आकांक्षा जीवन स्तर की स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग की धारणा ने भी आदमी को बहुत धोखे में डाला है, दिग्मूढ बनाया है। हर व्यक्ति के मन में लालसा है कि जीवन स्तर उन्नत होना चाहिए । समस्या यह है उसके लिए पास में साधन नहीं है । प्रतिष्ठा का मानदण्ड, विकास का चिह्न यह मान लिया गया कि इतनी बातें तो होनी ही चाहिए। यदि यह धारणा होती-जीवन की प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति होनी चाहिए तो कोई समस्या नहीं थी। यह एक स्वस्थ चिन्तन है । पशु-पक्षी भी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं तो मनुष्य जैसा बुद्धिमान् प्राणी न करे, यह कैसे हो सकता है ? किन्तु इस स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग की धारणा ने प्राथमिक आवश्यकताओं गौण कर दिया, अनावश्यक वस्तुओं के प्रति एक ललक मनुष्य के भीतर पैदा कर दी। मनुष्य की तीन कोटियां ___ महावीर ने मनुष्य का अध्ययन किया, मनुष्य की वृत्तियों का अध्ययन किया। उन्होंने बतलाया- मनुष्य अलग-अलग प्रकृति का होता है, सबको एक ही तराजू से मत तोलो। उन्होंने तीन वर्गों में मनुष्य को विभाजित किया • महेच्छ • अल्पेच्छ इच्छाजयी। पहली कोटि के मनुष्य वे हैं, जो महा इच्छा महारंभ वाले हैं। दूसरी कोटि के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003067
Book TitleMahavira ka Arthashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2007
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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