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________________ जिज्ञासा : समाधान १११ लिए भी लम्बी लाइन लगती है । ये सारी विपरीत अवधारणाएं चली—शस्त्र-निर्माण और अंतरिक्षयान के निर्माण में तो अपरिमित राशि खर्च कर दी और प्राथमिक आवश्यकताओं पर ध्यान ही नहीं दिया। अब लौहावरण के हटने पर सब कुछ साफ दिखाई देने लगा है कि वहां न तो कभी शान्ति थी और न अहिंसा थी। इसकी बात अब वे करने लगे हैं। यह शान्ति और अहिंसा की बात प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद ही समझ में आती है । प्रश्न-संयुक्त परिवार की परम्परा टूट रही है। परिवार बिखरते जा रहे हैं। इसका मूल कारण क्या है? उत्तर-परिवार का मुखिया जितना सहिष्णु और संतुलित होना चाहिए, उतना आज नहीं होता, यह पहली कमी दिखाई दे रही है। पूज्य गुरुदेव ने परिवार या समाज के मुखिया के लिए एक सूत्र दिया था—समता, क्षमता और ममता का। ये तीन बातें हों तो परिवार बिखरेगा नहीं। मुखिया में समता होनी चाहिए, उसका दृष्टिकोण सम होना चाहिए। चार पुत्र हैं तो चारों के प्रति समान दृष्टिकोण हो । क्षमता-सहिष्णुता भी होनी चाहिए । परिवार में नाना रुचि के, नाना स्वभाव के लोग होते हैं। जहां तक हो सके, उनकी बातों को सहन करना चाहिए। सबके प्रति ममता—अपनत्व का भाव रहे। यह परिवार को एक रखने का बहुत बड़ा साधन एक समस्या यह है—वर्तमान में आकर्षण बहुत पैदा हो गए हैं और अनेक गलत धारणाएं पैदा हो गई हैं। उनमें स्वतन्त्रता की मिथ्या धारणा प्रमुख है। चार भाई हैं, उनमें से तीन कमजोर हैं। पहले चिन्तन यह होता था---एक भाई उन तीनों को साथ लेकर चलता था, उन्हें सहारा देता था। आज चिंतन यह हो गया है कि हम इनके साथ पिछड़े क्यों रहें । विकास करें, आगे बढ़ें, हमें इनसे क्या लेना-देना है? इस स्वार्थवृत्ति के विकास ने भी परिवारों को तोड़ा है। वर्तमान का एक और चिंतन इसके लिए उत्तरदायी है—सभी स्वतन्त्र रहना चाहते हैं, कोई किसी के अधीन या पीछे चलना नहीं चाहता। ये सब ऐसे कारण हैं, जिनसे बिखराव की स्थिति बनती है। प्रश्न-नैतिकता अच्छी है, हर व्यक्ति नैतिक होना चाहता है किन्तु मौका आने पर अनैतिक बन जाता है, क्यों? उत्तर-आप इस बात को समझ लें कि नैतिकता अच्छी है, आदमी नैतिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003067
Book TitleMahavira ka Arthashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2007
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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