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________________ १०२ नहा है । यह उन लोगों के लिए अर्थवान् है, जो कर्मणा धार्मिक होते हैं । ऐसे धार्मिक साधु संन्यासियों जितने विरल नहीं फिर भी जनसंख्या की अपेक्षा विरल ही होते हैं। इसलिए उनके आधार पर न तो आर्थिक मान्यताएं स्थापित होती हैं और न वे आर्थिक प्रगति में अवरोध बनते हैं । अधिकांश धार्मिक जन्मना धर्म के अनुयायी होते हैं। वे आवश्यकताओं की कमी, अर्थ-संग्रह की कमी, विलासिता के संयम और नैतिक नियमों में विश्वास नहीं करते। उनका धर्म नैतिकता - शून्य धर्म होता है । वे धार्मिक होने के साथ-साथ नैतिक होना आवश्यक नहीं मानते । वे धर्म के प्रति रुचि प्रदर्शित करते हैं, पर उनका आचारण नहीं करते। ऐसे धार्मिकों का धर्म आर्थिक प्रगति को प्रभावित नहीं करता । आवश्यकता - वृद्धि का समर्थन अर्थशास्त्र में आर्थिक प्रगति के लिए आवश्यकता बढ़ाने का सिद्धान्त है । कुछ • अर्थशास्त्री इसका मुक्त समर्थन करते हैं तो कुछ अर्थशास्त्री इसके मुक्त समर्थन के पक्ष में नहीं है। आवश्यकताओं को बढ़ाने के पक्ष में निम्न तर्क प्रस्तुत किए जाते १. २. ३. ४. महावीर का अर्थशास्त्र ३. आवश्यकताओं की वृद्धि से मनुष्य को अधिकतम सुख या संतोष प्राप्त होता है । आवश्यकताओं की वृद्धि सभ्यता के विकास और जीवन स्तर की उन्नति में सहायक होती है । आवश्यकताओं की वृद्धि से, धन से उत्पादन में वृद्धि होती है 1 आवश्यकताओं की वृद्धि से राज्य की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है फलत: वह राज्य सैनिक दृष्टिकोण से सशक्त और अपनी रक्षा में आत्मनिर्भर हो जाता है । विपक्ष में तर्क १. 1 आवश्यकता को बढ़ाने के विपक्ष में निम्न तर्क प्रस्तुत किए जाते हैंआवश्यकताओं की वृद्धि से मनुष्य दुःख-क्लेश का अनुभव करता है आवश्यकताओं की वृद्धि और फिर उनकी संतुष्टि के लिए निरंतर प्रयत्न मनुष्य को भौतिकवादी बनाता है । आवश्यकताओं की वृद्धि से समाज में वर्ग संघर्ष (Class struggle) हो जाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003067
Book TitleMahavira ka Arthashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2007
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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