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________________ ४३ अहिंसा : जीवन संस्कृति को नई दिशा प्रतिपक्षी के विस्मय और आदर के पात्र होते हैं। तब ऐसा क्यों न माना जाये कि सत्याग्रही सेना एक ऐसी ही बड़ी फौज है, जिसे यहां सदा से हुक्म दे रखा है कि "तुम मरने के लिए तैयार रहो, लेकिन किसी को मारने का नाम भी मत लो।" यह बात मनुष्य के लिए असंभव नहीं है। जब इस्लाम के पैगम्बर किसी लड़ाई में लड़ रहे थे, तब किसी ने आकर पूछा-नमाज का वक्त हो गया है, हम लड़ते रहें या नमाज पढ़ें ? हमारा नमाज छोड़कर मरना ठीक है या लड़ना छोड़कर नमाज पढ़ना ठीक है ? नबी साहब ने हुक्म दिया--शत्रु के प्रहार भले ही होते रहें, तुम लड़ना छोड़ कर रणक्षेत्र में ही नमाज पढ़ लो। चन्द लोग मारे जाएंगे शायद अधिक मर जाएंगे लेकिन नमाज न पढ़ना गुनाह होगा जो करने का हमें हक नहीं है। पैगम्बर के सैनिक न तो कोई बड़े महात्मा थे, न विद्वान् । उन्होंने पैगम्बर की नसीहत मान ली, आगे वैसा ही किया। नतीजा यह हुआ कि मुसलमानों में असाधारण शक्ति आ गई और उनकी यह वीरोचित निष्ठा देखकर प्रतिपक्षी भी उनका मान करने लगे। यह सब कैसे हुआ ? कैसे होता आया है ? एक ही जवाब है, जब मनुष्य श्रद्धा रखता है, तब वह श्रद्धावान् होता है। श्रद्धावान् होने में बलिदान देने की तैयारी करता है। बलिदान देने से औरों के लिए नमूना पेश करता है और अंत में यह असाधारण वीर-कर्म भी सब मनुष्यों के लिए मामूली बात हो जाती है। इसीलिए हम कभी यह नहीं कह सकते कि अहिंसा सामान्य मनुष्य के शक्ति के बाहर की चीज है या श्वेत साधुओं और वैरागियों का ही धर्म है। संयम ही संस्कृति मात्र की बुनियाद है । न्याय, प्रेमनिष्ठा, ईमान, कानूनपरस्ती प्रत्येक की बुनियाद में संयम तो है ही। वही संयम की मात्रा अहिंसा के लिए भी काफी है। केवल राजनेताओं को इतना विश्वास करना चाहिए कि वह सम्भव है और उसी में मनुष्य जाति का लाभ है। अहिंसा सामान्य मनुष्य के लिए असंभव नहीं है। इतना समझने के बाद अहिंसा का चमत्कारपूर्ण प्रभाव अपरिहार्य कैसे होता है, यह बात समझनी चाहिए। इस श्रद्धा के अभाव में ही अहिंसा धर्म के प्रति निष्ठा शिथिल हो सकती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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