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________________ ३४ अहिंसा : व्यक्ति और समाज है। उसके लिए जन-बल को बटोरना होगा। उस बल के लिए साधारण जन-मानस को यही प्रतीत होना आवश्यक है कि आवेग आवेग को उपशांत नहीं कर सकता। हिंसा हिंसा को खत्म नहीं कर सकती। आग आग को नहीं बुझा सकती। यह प्रतीति जिस दिन कसौटी पर चढ़कर जनता के समक्ष आएगी, वह एक आश्वासन का स्वर होगा और जनता स्वयं उस स्वर के साथ अपना स्वर जोड़ देगी। हम एक व्यावहारिक उदाहरण लें। मिलावट के विरुद्ध, रिश्वत के विरुद्ध अथवा अन्य किसी सामाजिक बुराई के विरुद्ध हर कोई आदमी आश्वासन चाहता है । वह चाहता है, उसे शुद्ध वस्तु मिले, बिना रिश्वत के उसका कार्य सधे । अब मिलावट या रिश्वत के विरुद्ध यदि कहीं आवाज उठती है तो जनता का समर्थन मिलना स्वाभाविक है और जिस चीज के विरुद्ध जनमत तैयार हो जाता है, वह कार्य कभी चल नहीं सकता। इस प्रकार अहिंसात्मक प्रतिरोध में मुझे हिंसात्मक प्रतिरोध की अपेक्षा अधिक क्षमता, सफलता और सहजता दीखती है। ध्यान देने की बात इतनी ही है कि उसका सूत्रसंचालन तटस्थता, विनम्रता, दृष्टिकोण और प्रवृत्ति की विशुद्धता और समता के साथ हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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