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________________ अहिंसा के अछूते पहलु में - सब जगह झगड़ा चल रहा है और इसका कारण है -- परस्परता की कमी | ७४ परस्परता की अनुभूति होने का अर्थ यह नहीं है कि स्वामी सेवक का सम्बन्ध समाप्त हो जाए । उसका अर्थ है - स्वामी - सेवक के संबंध का दृष्टिकोण बदल जाए । परस्परता की अनुभूति का सूत्र विकसित होने पर एक स्वामी सोचेगा - उचित दाम दूं और उचित काम लूं । ठीक प्रकार से इसका भरण पोषण हो सके – यह व्यवस्था मुझे करनी है। नौकर का दृष्टिकोण होगा - मैं उचित ढंग से काम करूं । जितना काम करूं उससे ज्यादा पाने की चेष्टा न करूं । यह परस्परता की अनुभूति का परिणाम है । जरूरी है प्रशिक्षण और प्रयोग परस्परता की अनुभूति, मानवीय एकता की अनुभूति, आश्वास, विश्वास और अभय - ये हैं सह-अस्तित्त्व के आधार सूत्र । जब ये शिक्षा के अंग बनेंगे, सह-अस्तित्व का वातावरण बनेगा । जब सह-अस्तित्व का विकास होगा तब सामाजिक जीवन की समस्याओं का समाधान स्वतः उपलब्ध होगा । केवल बातों से या कुछेक वक्तव्यों से समस्या का समाधान खोजना चाहें, करना चाहें तो वह संभव नहीं है । इसके लिए प्रशिक्षण की गहरी जड़ों तक पहुंचना होगा। वहां पहुंचकर ही सामाजिक जीवन की जो सबसे बड़ी समस्या है, विरोध और भेद की समस्या है, उसका समाधान पाया जा सकता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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