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________________ ४८ अहिंसा के अछूते पहलु. इस स्थिति में जो लोग अहिंसा में आस्था रखते हैं, उनके सामने यह प्रश्नचिह्न है कि क्या वे अहिंसा की चर्चा ही करें ? केवल बात ही करें ? अहिंसा का कोरा उपदेश ही दें या इससे आगे अपना कदम बढ़ाएं ? मुझे लगता है कि प्रयत्न गहरा नहीं हो रहा है । आस्था मत बदलो एक संन्यासी के सामने भक्त बैठा था । वह बड़ा विचित्र भक्त था । आज एक देवता को मानता, कल दूसरे को मानता और परसों तीसरे को मानता। रोज नए देवता को मानता । हमारे धार्मिक जगत में देवताओं की भी कमी नहीं है और मानने वालों की भी कमी नहीं है। वह रोज बदलता रहता पर सफल कहीं नहीं हुआ । एक दिन उसने पूछा-संन्यासी जी ! मैं इतनी भक्ति करता हूं और रोज देवताओं की मनौती मनाता हूं, पर सफलता कभी नहीं मिली। इसका कारण क्या है आप बतलाएं ? संन्यासी ने उत्तर नहीं दिया। बातचीत हो रही थी। इतने में ही एक दूसरा भक्त आ गया और आकर बोला कि पहले मेरी सुनें। मुझे जल्दी खेत में जाना है। इनके कोई काम है नहीं । बड़े लोग हैं, पर मैं तो किसान हूं। पहले आप मेरी बात का उत्तर दें। संन्यासी ने कहा-क्या बात है ? उसने कहा-मैंने दस दिन पहले खेत में एक कुआं खोदा, पानी नहीं निकला, उसके पास ही दूसरा खोदा तो भी पानी नहीं निकला, तीसरा खोदा तो भी पानी नहीं निकला । दस दिन हो गए । खोदता चला जा रहा हूं, पानी नहीं निकल रहा है ? संन्यासी ने कहा-भले आदमी ! इतने गड्ढे क्यों खोदे ? एक ही खोदते और गहराते चले जाते तो पानी अपने आप निकलता। छोटे-छोटे चाहे १०० कुएं खोदो, पानी निकलेगा नहीं। गहरा खोदने पर एक कुआं भी पानी दे देगा और सौ छोटे-छोटे गढे खोदने पर पानी की एक बूंद भी प्राप्त नहीं होगी। उसने सुना । वह बोला-मैं जा रहा हूं, मेरा समाधान हो गया । उसका समाधान ही नहीं हुआ, पहले वाले का भी समाधान हो गया। संस्कारगत है हिंसा आस्था को बदलो मत । रोज नए तेवर मत लाओ। आस्था को इतना गहरा बनाओ, अपने आप कुएं में पानी निकल आए। मुझे लगता हैअहिंसा में हमारी आस्था तो है पर उस आस्था में गहराई नहीं है । कहीं कोई थोड़ी सी घटना होती है और हिंसा भड़क उठती है। वह सफल हो जाती है। अहिंसा में विश्वास रखने वाले भी कह देते हैं कि आखिर अहिंसा से हुआ क्या ? हिंसा हुई, सामना हुआ, बदला लिया गया और बात समाप्त हो गई। हिंसा सफल हो गई। अहिंसा सफल नहीं होती। अहिंसा में कोई आस्था नहीं है। इसका कारण है-अधिकांश आदमी अहिंसा का मुखौटा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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