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________________ ४९ अहिंसा के अछूते पहलु. तुम्हारा इकलौता बेटा दुर्घटना ग्रस्त हो गया । उस समय क्या होता है ? शरीर तो बहुत मजबूत है, वहुत हृष्टपुष्ट है, पर उस संवाद से उसका सारा शरीर ढीला पड़ जाता है, पैर उठते नहीं, हाथ कांपने लग जाते हैं, दिमाग चकरा जाता है । सारा शरीर लड़खड़ा जाता है। शरीर इतना मजबूत था, क्या हुआ ? शरीर तो अब भी वैसा ही है, कोई फर्क नहीं आया । शायद आधा किलो वजन भी नहीं घटा है। उतना ही शरीर, किन्तु भाव तंत्र थोड़ा-सा गड़बड़ाया और शरीर लड़खड़ा गया । शरीर का संचालक है भावतंत्र और दूसरे नंबर पर है भावतंत्र द्वारा संचालित मानसतंत्र | ये शरीर के संचालक हैं । लोग भी बड़े अजीब हैं कि जो मूल संचालक है उस ओर ध्यान कम देते हैं और जो सीधा दिखता है उस ओर ध्यान ज्यादा जाता है । पहले आता है उसकी ओर हमारा ध्यान ज्यादा जाता है और जो पीछे आता है उसकी ओर हमारा ध्यान नहीं जाता । यह बड़ी अजीब दुनिया है और अजीबोगरीब है हमारी मनोवृत्ति । इस मनोवृत्ति को बदलना भी बहुत जरूरी है । भावतंत्र शक्तिशाली बना रहे । भावतंत्र शक्तिशाली होता है तो आदमी के सारे कार्य ठीक हो जाते हैं । भावतंत्र को कैसे मजबूत बनाएं ? कैसे शक्ति - शाली बनाएं ? यह प्रश्न है । बात कल्पना से परे की " एक बड़ी मार्मिक घटना हैं, कल्पना से बाहर की बात है। एक बड़ा व्यापारी था । उसका इकलौता बेटा पढ़ने जा रहा था। तेज रफ्तार से कार आई, बच्चे को कुचल कर निकल गई कोर्ट में केश चला । पिता का नंबर आया गवाही के लिए। पिता बहुत संतुलित आदमी था । उसने चिंतन किया, मेरा लड़का तो चला गया, वह तो वापस आने का नहीं । ड्राईवर को कड़ी सजा होगी, इसका परिवार आधारहीन हो जाएगा। मुझे जितना कष्ट हुआ है, इसके परिवार को भी उतना ही कष्ट होगा । एक संवेदनशीलता का धागा जुड़ा । उसने संवेदना के स्तर पर चिंतन किया और सोचा कि हुआ सो हो गया । मुझे इसको बचा लेना है । न्यायाधीश ने पूछा, बताओ कैसे हुई दुर्घटना ? व्यापारी ने कहा, दुर्घटना हुई है । इसमें ड्राईवर का कोई दोष नहीं है । यह कार बिलकुल ठीक चला रहा था । लड़के की ही गलती थी । वह दौड़ कर कार के सामने आ गया और मर गया । बात समाप्त । ड्राईवर बिलकुल बच गया । क्या ऐसा होना संभव है ? क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि बाप का इकलौता बेटा ड्राईवर की गलती से कुचल गया और बाप ही यह साक्षी देता है कि ड्राईवर की कोई गलती नहीं थी । यह संभव नहीं है। संतुलित व्यक्ति ही केवल ऐसा कर सकता है ।..... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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