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________________ ५. अहिंसा और आसन हिंसा और अहिंसा का सम्बन्ध अनेक घटकों से है । हिंसा की वृत्ति बढ़ने में अनेक तत्त्व काम करते हैं । अहिंसा के विकास में भी अनेक तत्त्व काम करते हिंसा और अहिंसा का सम्बन्ध या इस भाषा में कहें कि हिंसा और अहिंसा की अभिव्यक्ति का सम्बन्ध हमारी मुद्राओं से भी है। हम किस प्रकार बैठते हैं, किस प्रकार खड़े होते हैं और किस प्रकार सोते हैं, इनके साथ भी उसका सम्बन्ध जुड़ा हुआ है।। आसन : एक महत्त्वपूर्ण उपक्रम योगासन एक बहुत पुरानी विधा है। हठयोग में आसनों का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैन परम्परा में भी उनका बड़ा महत्त्व रहा है। बौद्ध ध्यानपद्धति विपश्यना ने आसनों को स्वीकार नहीं किया किन्तु जैन परम्परा और हठयोग की परम्परा में आसनों को बहुत मूल्य दिया गया । आसन केवल स्वास्थ्य के लिए ही नहीं किए जाते, केवल मांसपेशियों को स्वस्थ बनाने के लिए ही नहीं किये जाते । उनका और ज्यादा प्रभाव है । उनसे मांसपेशियां सक्रिय और स्वस्थ बनती हैं, रक्त का अभिसरण सम्यक् प्रकार से होता है, शारीरिक क्रियाएं स्वस्थ बन जाती हैं। इतना ही नहीं, उनके द्वारा नाड़ीतंत्र और ग्रन्थि-तन्त्र भी प्रभावित होता है। उनके द्वारा भावनाओं पर नियंत्रण किया जा सकता है। आवश्यक है श्रम युग की समीक्षा करें तो एक नई स्थिति सामने आती है, जो इस युग की विशिष्ट देन है। प्राचीनकाल में मांसपेशियों पर दबाव ज्यादा पड़ता था और नाड़ी-तन्त्र पर दबाव कम पड़ता था। आदमी अपने हाथ से काम करता, श्रम करता । जब श्रम होता है तो मांसपेशियों पर अधिक दबाव पड़ता है किन्तु नाड़ी-तन्त्र को विश्राम ज्यादा मिलता है। आज उलटा हो गया। इतने साधन और सुविधाएं हो गईं, जिनसे मांसपेशियों को तो बहुत आराम मिल रहा है, किन्तु नाड़ी-तन्त्र पर अत्यधिक दबाव पड़ रहा है। यह एक भिन्न प्रकृति बन गई । पैदल चलने की जरूरत नहीं, वाहन तैयार है। पंखा झलने की जरूरत नहीं, बिजली का पंखा तैयार है । न हाथ की मांसपेशियों को श्रम देने की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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