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________________ अहिंसा और ध्यान उसे थोड़ा स्थिर बना दें। पर नींद में भी पूरी स्थिरता कहां होती है ? अगर २४ घंटा में आधा घंटा भी स्थिर होने का अभ्यास करें तो एक संतुलन बन जाएगा। कायिक चंचलता जितनी थी, उसमें आधा घंटा स्थिरता आई तो आप निश्चित माने कि हिंसा की वृत्ति में परिवर्तन आना शुरू हो जाएगा। वाचिक चंचलता बहुत चलती है । आदमी बहुत बोलता है। बिना मतलब बहुत बोलता है। अभ्यास अचिन्तन का एक दार्शनिक से पूछा गया-दुनिया में सबसे सरल काम क्या है उसने उत्तर दिया कि बिना मांगे सलाह देना सबसे सरल काम है। इतना सरल कोई काम नहीं है। फिर पूछा-सबसे कठिन क्या काम है ? उसने कहा, सबसे कठिन काम है-अपने आपको देखना। यह सबसे कठिन काम है। लोग सबसे सरल काम करना चाहते हैं, कठिन काम करना नहीं चाहते। ____ अगर दिन भर में एक घंटा न बोलने का अभ्यास किया जाए, प्रयोग किया जाए तो एक संतुलन बनेगा। जैसे कायिक अनुशासन है कायोत्सर्ग, वैसे ही वाचिक अनुशासन है-अन्तमौन । आदमी इतना सोचता है कि निरंतर सोचता ही रहता है। बहुत ज्यादा सोचता है, अनावश्यक सोचता है । सोचना जरूरी होता है, बिना सोचे काम नहीं चलता, पर वह अनावश्यक बहुत सोचता है । अनावश्यक चिंतन बंद हो जाए तो भी बहुत बड़ी बात होती है। आदमी में चिंतन चलता ही रहता है, कभी बंद नहीं होता। अनावश्यक चिंतन को बंद करना मानसिक अनुशासन है । एक संतुलन बनाएं । २४ घंटा में एक घंटा न सोचने का अभ्यास करें या न रहा जाए तो कम से कम एक विषय पर सोचने का अभ्यास करें। एक विषय पर सोचें, दूसरे विषय पर न जाएं । स्थिरता से हिंसा पर नियंत्रण पहला है कायिक अनुशासन का प्रयोग, दूसरा है वाचिक अनुशासन का प्रयोग और तीसरा है मानसिक अनुशासन का प्रयोग । ये तीन ध्यान के प्रयोग हैं। कायिक ध्यान, वाचिक ध्यान और मानसिक ध्यान । इनसे हिंसा की प्रवृत्ति पर नियंत्रण होता है। चंचलता पर नियंत्रण का अर्थ है हिंसा पर नियंत्रण । अतिरिक्त चंचलता का अर्थ है हिंसा को बढ़ावा देना और प्रोत्साहन देना। हिंसा को कौन बढ़ा रहा है, चंचलता ही तो बढ़ा रही है और चंचलता न हो तो हिंसा को इतना मौका नहीं मिलता। आदमी कभी हिंसा पर उतारु नहीं होता। जब आदमी हिंसा करता है उस समय सारी जैविक प्रक्रिया बदल जाती है। पेशियों को अधिक रक्त मिलना शुरू हो जाता है । पेशियां अधिक तन जाती हैं। एड्रीनल ग्रन्थि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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