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________________ हिंसा की जड़ १५ परिवेश को कैसे अच्छा बनाएं, वातावरण को कैसे अच्छा बनाएं, परिस्थिति को कैसे अच्छा बनाएं, इस बात पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है। ___ एक बच्चा टी. वी. देखने बैठा, सिनेमा देखने बैठा, समाचार पत्र पढ़ने बैठा और वे सारी घटनाएं जो हिंसा को उत्तेजना देने वाली हैं, चोरी, लूटखसोट, मारकाट, अपराध आदि को वह देखता है तो क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि उससे अहिंसा का विकास होगा? कभी संभव नहीं लगता। वह बच्चा निश्चित ही हिंसोन्मुखी बन जाता है। उसके कच्चे दिमाग पर निश्चित ही इतना प्रभाव पड़ता है कि वह जाने-अनजाने हिंसा की ओर दौड़ने लग जाता है। आज एक प्रश्न है कि समाज में इतने अपराध क्यों है ? शायद इस प्रश्न पर गंभीरता से चितन नहीं किया गया, इसका समाधान गंभीरता से नहीं खोजा गया कि अपराध क्यों बढ़ रहे हैं ? हिंसा क्यों बढ़ रही है ? आतंक क्यों बढ़ रहा है ? अगर कारण खोजा जाए तो बहुत साफ है कि मनुष्य को जितनी हिंसा की घटनाएं, चर्चाएं और वार्ताएं सुनने को मिलती हैं उसकी तुलना में अहिंसा का एक अंश भी देखने-सुनने को नहीं मिलता। सारा वातावरण हिंसा का है। प्रश्न उठता है कि आज प्रतिष्ठा किसको मिल रही है ? समाचार पत्रों में मुख्यतया किसके समाचार छप रहे हैं सूखियों में ? सारे समाचार पत्र हिंसा, बलात्कार, लूटखसोट के समाचारों से भरे पड़े हैं । व्यक्ति देखता है कि हजार प्रयत्न करने पर भी समाचार पत्र में कभी नाम नहीं आता है और चोरी-डकैती की, सारे समाचार पत्रों में उसी की तूती बजने लग जाती है । किसका मन नहीं ललचाता ? यह तो बहुत अच्छा तरीका है प्रसिद्ध होने का। एक पूरा वातावरण जो मिल रहा है, परिवेश जो मिल रहा है, वह अपराध को बढ़ाने वाला है, घटाने वाला बिलकुल नहीं लगता । क्या आवश्यकता है कि बुरी बातों को और बुरी घटनाओं को संक्रामक बनाया जाए ? हर बात का प्रसारण जरूरी है क्या ? प्राचीन काल में तो एक नीति का सूत्र था-बुरी बात को फैलाना नहीं चाहिए। एक आदमी दूसरे की बुराई करता है तो दूसरा कहता हैभाई ! इससे क्या लाभ होगा? इसे यहीं रहने दो, आगे मत कहो । आज तो ऐसा लगता है कि हमारे संवाददाताओं को, समाचार पत्रों के प्रतिनिधियों को कोई ऐसी घटना मिलती है तो उसे जल्दी प्रकाशित कर देना चाहते हैं । यदि कल पत्र निकलने वाला है तो उसके लिए सांध्य-संस्करण और निकाल देंगे। क्या इस परिस्थिति और वातावरण में हम कल्पना करें कि हिंसा नहीं बढ़ेगी और अपराध नहीं बढ़ेंगे? इसलिए हमें सबसे पहले ध्यान देना है अपने परिवेश पर, अपने वातावरण पर। हमने अपने चारों ओर किस प्रकार के वातावरण का निर्माण कर रखा है ? वह जब तक नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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