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________________ भावात्मक स्वास्थ्य जरा सा दरवाजा खोलो और वह भीतर आने को तैयार है। __ भय एक संवेग है । हीन भावना और उत्कर्ष की भावना संवेग हैं । घृणा की भावना और काम-भावना संवेग हैं। ये सारे संवेग हैं। व्यक्ति स्वयं इस बात पर ध्यान दे कि वह किस प्रकार के संवेग में जी रहा है और उस संवेग में जीने पर उसमें किस प्रकार के स्वभाव का निर्माण हो रहा है। प्रश्न है जागरूकता का स्वभाव और संवेग-दोनों जुड़े हुए हैं। जो व्यक्ति अपने स्वभाव को अच्छा बनाना चाहे, अपने भावनात्मक स्वास्थ्य को ठीक रखना चाहे, उसे संवेगों के प्रति बहुत जागरूक रहना होता है । जागरूकता जीवन की सफलता का बड़ा सूत्र है। हम जागरूक बनें अपने संवेगों के प्रति । कौन सा संवेग ज्यादा सक्रिय हो रहा है ? संवेग का मेरे स्वभाव पर क्या परिणाम होगा? इतनी सी जागरूकता आती है तो स्वभाव भी अच्छा बन जाता है, भावनात्मक स्वास्थ्य भी अच्छा बन जाता है, व्यवहार भी अच्छा बन जाता है। प्रश्न है जागरूकता का। हम संवेगों को जानते ही नहीं है और जान जाते हैं तो जागरूक नही होते, समझ नहीं पाते। बच्चा आया दादा के पास और बोला-डुगडुगी वाला आया है। मुझे भी एक ले दो। दादा बोला-ठीक नहीं है, नहीं लेनी है। तू बार-बार बजाएगा और मेरी नींद में बाधा डालेगा । मैं नहीं खरीदूंगा। बच्चे ने कहाआप इस बात की चिंता न करें। जब तक आप जागते रहेंगे मैं उसे नहीं बजाऊंगा। आप जब सो जाएंगे तभी उसे बजाऊंगा। हम ठीक समझ ही नहीं पाते । बेचारे दादा ने कहा था तू मेरी नींद में बाधा डालेगा और बच्चे ने कहा-जब आप जागेंगे तब तक बजाऊंगा ही नहीं । जब आप सो जाएंगे तभी बजाऊंगा। इष्ट स्मरण : एक महान सूत्र हम समझ नहीं पाते हैं इस सचाई को। कैसे संवेग से छुटकारा पाया जा सकता है और कैसे स्वभाव को बदला का सकता है। धर्म के क्षेत्र में एक बात कही जाती है-निरंतर अपने इष्ट का स्मरण करें, अपने गुरु का स्मरण करें। किसी पवित्र भाव को बराबर बनाए रखें। बात बहुत छोटी सी लगती है किन्तु मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यदि हम विचार करें तो यह बहुत महत्त्वपूर्ण सूत्र है । बहुत बार बहुत गहरा सूत्र देना भी कठिनाई पैदा करता है। सूत्र तो गहरा दे दिया और पकड़ने वाला उसे नहीं पकड़ पा रहा है, बात अधर में लटक जाती है । यह सूत्र इसलिए दिया कि दिन भर में जितने समय तुम अपने इष्ट का, अपने गुरु का, अपने मंत्र का जप करोगे, उनका ध्यान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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