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________________ मानसिक स्वास्थ्य १०५ जागे बिना उनकी क्रियान्विति संभव नहीं है । क्रियान्विति के बिना किसी बात या योजना का कोई मूल्य नहीं होता । कोरे आलेखन, प्रवचन और सिद्धांत से समाज निर्माण का स्वप्न सार्थक नहीं होता । कोरा सिद्धांत कारगर नहीं होता चीन की एक प्रचलित लोककथा है । एक पुस्तक रखी थी रसोईघर में । मालिक किसी कार्य से बाहर चला गया । चूहे इकट्ठे हो गए। जहां रसोई बनती है, वहां चूहे इकट्ठे हो ही जाते हैं । चूहों को देखकर पुस्तक ने कहानिकट मत आओ । चूहे बोले- क्यों ? पुस्तक ने कहा- जानते नहीं हो, मैं क्या हूं । मेरे पास आओगे तो खत्म हो जाओगे । चूहों ने पूछा- ऐसी क्या बात है ? पुस्तक बोली- मेरे में है चूहों को मारने की विधियां, चूहों को पकड़ने की विधियां । यह सुनकर चूहे हंसे और उन्होंने एक साथ पुस्तक पर धावा बोल दिया । कुतर डाला पुस्तक को । उसकी कतरन - कतरन बना दी । चूहे इस सचाई को जानते थे कि कोरे सिद्धांत से कुछ नहीं होता, जब तक करने की क्षमता नहीं होती । यह एक बड़ी सचाई है— जब तक कोरा सिद्धान्त रहता है उसकी क्रियान्विति नहीं होती, इस दुनिया में उसका कोई अर्थ नहीं होता । - कर्त्तव्य-बोध : चेतना का शक्तिशाली रूप कर्त्तव्य-बोध मनुष्य की चेतना का सबसे शक्तिशाली रूप है | चेतना पीछे रहती है, सामने नहीं आती । सामने आती है क्रिया । जैन दर्शन और शैव दर्शन में यह बात बहुत स्पष्ट है कि चेतना और क्रिया को अलग नहीं किया जा सकता । चेतना हमेशा पर्दे के पीछे रहती है और क्रिया सामने आ जाती है । कर्मशास्त्र की भाषा में देखें । ज्ञानावरण का क्षयोपशम यानी चेतना का विकास तब तक हमारे किसी काम का नहीं होता जब तक अन्तराय कर्म का क्षयोपशम उसके साथ न जुड़ जाए, नाम कर्म का उदय साथ में न जुड़ जाए । शरीर - नामकर्म का उदय, अन्तराय कर्म का क्षयोपशम और ज्ञानावरण का क्षयोपशम -- इन तीनों का योग मिलता है तब काम बनता है । पर सबसे आगे रहती है क्रिया और पीछे रहती है चेतना । कर्त्तव्य के आधार पर व्यक्ति की चेतना बोलती है । किस व्यक्ति ने कैसा काम किया और इसके पीछे चेतना कैसी है ? जिसमें कर्त्तव्य का बोध नहीं होता, कर्त्तव्य की चेतना जागृत नहीं होती, वह मानसिक दृष्टि से स्वस्थ व्यक्ति नहीं होता । पांचवीं कसौटी : संतोष मानसिक स्वास्थ्य का एक लक्षण है— संतोष । अपना जो मुख्य कार्य है, उसमें संतोष मानना । विद्यार्थी का ध्यान परीक्षा में है । कितने अंक मिलने चाहिए - इस ओर ध्यान लगा रहता है । गहराई से पढ़ना है, विद्यार्जन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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