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________________ मानसिक स्वास्थ्य १०१ सारा वातावरण धूलमय है, कहां जाएं ? क्या करें? कितना अच्छा होता यदि हम दिल्ली में होते, आंधी और गर्मी का पता ही नहीं चलता। क्यों दिल्ली से लाडनूं आए और क्यों इस समस्या से त्रस्त हो गए ? न जाने कब वर्षा होगी? कब ठंड होगी और कब गर्मी से झुलसते हुए शरीर को राहत मिलेगी ? ऐसा सोचने का परिणाम है-मानसिक बीमारी का प्रारंभ । सतही तौर पर न देखें परीषह प्रकरण में मुनि के लिए बतलाया गया-सर्दी को सहो, गर्मी को सही, गाली को सहो, मच्छर काटे तो उसे सहो । निरंतर सहो, सहते रहो, कष्टों को झेलते चले जाओ। ऐसा लगता है कि कष्ट सहने के सिवाय और कोई काम ही नहीं है एक मुनि के । अनेक लोग कहते हैं-जैन धर्म है ही क्या ? उसमें केवल कष्टों को झेलना है । उसी का नाम है-जैन धर्म । ऊपरी और सतही दर्शन में लगता है—समुद्र शंख और सीपियों से भरा हुआ है, उसमें कोई मूल्यवान् संपदा नहीं है। जब तक सतही दर्शन रहेगा, हमारा दृष्टिकोण भिन्न प्रकार का होगा । जिन लोगों ने अतल गहराइयों में जाकर देखा है, उन्हें पूछा जाए कि समुद्र कैसा है ? वह कितना सुन्दर है ? कितना भव्य है ? वहां क्या है ? कितनी औषधियां और वनस्पतियां हैं ? कितने रत्न और रसायन भरे पड़े हैं ? समुद्र का एक दूसरा रूप ही सामने आता है । जो व्यक्ति सतही तौर पर सिद्धांतों को देखता है, उसे बड़ा अजीब सा लगता है। वही व्यक्ति जब उनकी गहराई में चला जाता है तो सारा दृष्टिकोण बदल जाता है, उसे एक नया सत्य प्राप्त होता है। परीषह : संदर्भ स्वास्थ्य का परीषह क्या है ? यदि मानसिक स्वास्थ्य के संदर्भ में इस प्रश्न पर विमर्श किया जाए तो निष्कर्ष होगा ये सारे परीषह मानसिक स्वास्थ्य के लक्षण हैं। इनके आधार पर मानसिक स्वास्थ्य की व्याख्या की जा सकती है। प्रायः मनोवैज्ञानिकों ने स्वस्थ मन की जो परिभाषा की है, उसमें सबसे ज्यादा महत्त्व दिया है समंज्जन को, एडजेस्टमेंट को। समंज्जन करना यानी नई परिस्थिति के साथ सामंजस्य स्थापित करना । कितनी भी कठिन और जटिल परिस्थिति आए, उसके साथ सामंजस्य स्थापित कर लेना मानसिक दृष्टि से स्वस्थ व्यक्ति का लक्षण है। गहराई में जाने पर पता चलता है कि ये परिस्थितियां सभी के जीवन में आती हैं। सर्दी किसे पीड़ित नहीं करती ? कौन सर्दी को सहन नहीं करता ? गर्मी किसे बाधित नहीं करती ? कौन नहीं सहता है गर्मी को ? हर आदमी को सर्दी-गर्मी सहनी ही पड़ती है। दो मार्ग : सुविधा और सहिष्णुता सर्दी को न सहना पड़े-इस दिशा में अनेक प्रयत्न चले हैं। वातानुकूलन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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