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________________ मानसिक स्वास्थ्य है कि सब बीमार बन रहे हैं । दानव के साथ रहना पसन्द नहीं गुरु और शिष्य एक वृक्ष के नीचे विश्राम कर रहे थे। एक अजनबी उधर से निकला । शिष्य को देखते ही वह उबल पड़ा। गालियां देने लगा। शिष्य कुछ देर तक शांति से सुनता रहा। अजनबी बोलता ही चला जा रहा था। शिष्य का संतुलन गड़बड़ा गया। वह क्रुद्ध हो गया। उसने भी प्रत्युत्तर में गालियों की बौछार कर दी। गुरु अपना कंबल उठा कर चल पड़ा । गुरु के इस व्यवहार से शिष्य का मन और अधिक आहत हुआ। वह बोलागुरुदेव ! बड़ी अजीब बात है। इसने मुझे इतनी गालियां दीं और आप शांत भाव से बैठे-बैठे सुनते रहे। जब मैंने गालियां देना शुरू किया, आप कंबल बांधकर जाने की तैयारी करने लगे । मैं समझ-नहीं पाया इसका क्या अर्थ है ? यह आपका कैसा व्यवहार है मेरे प्रति ? गुरु ने मुस्कराते हुए कहा-वत्स ! गाली देने वाला क्रोध में होता है। क्रोध दानव होता है । जब तक तुम शांत थे तब तक तुम देव थे। मैं तुम्हारे साथ बैठा था। जब तुम गालियां देने लगे, दानव बन गए। दानव के साथ रहना मुझे पसन्द नहीं, इसलिए मैं जा रहा हूं। समस्या है संतुलन की - आज संतुलन कहीं नहीं है। यदि एक राष्ट्र संतुलन खो देता है तो दूसरा राष्ट्र भी अपना संतुलन खोए बिना नहीं रह सकता। यदि अमुक राष्ट्र परमाणु बम बनाएगा तो मुझे भी बनाना जरूरी है। यदि पाकिस्तान बनाए और हिन्दुस्तान नहीं बनाए तो वह सुरक्षित नहीं रह सकता। यह स्पष्ट है। अतः उसे भी परमाणु बम बनाना चाहिए। एक संतुलन खोए तो दूसरे को भी संतुलन खोना जरूरी है। यह दुनिया का एक सम्यक व्यवहार हो गया। एक मानसिक दृष्टि से बीमार होता है तो दूसरे को भी मानसिक दृष्टि से बीमार होना जरूरी है। एक व्यक्ति आवेशपूर्ण व्यवहार करे तो दूसरे को भी वैसा करना जरूरी है। यदि ऐसा न करे तो मानसिक दृष्टि से स्वस्थ रह जाए पर व्यक्ति मानसिक दृष्टि से स्वस्थ रहना नहीं चाहता, बीमार होना चाहता है। ___ इस अवस्था में क्या यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि शस्त्र का निर्माण, शस्त्र का नियोजन, शस्त्र का व्यापार और शस्त्र का प्रयोग-ये सब मानसिक बीमारी के चिह्न हैं । धर्म और स्वास्थ्य प्रश्न होता है-हम मानसिक दृष्टि से किसे स्वस्थ माने ? मानसिक दष्टि से स्वस्थ कौन हो सकता है ? उसकी परिभाषा क्या है ? महावीर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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