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________________ परिवर्तन की परम्परा : १ १६७ छेद सूत्रों में इतने विचित्र अपवाद पड़े हैं कि मैं उनका उल्लेख इस परिषद् में कर नहीं सकता। मुझे वैसा करना भी नहीं चाहिए। मैंने एक संकेत मात्र दिया है। इन संदर्भो में यदि हम सोचें तो यह प्रश्न, ही नहीं होता कि जो काम हमने आज तक नहीं किया, उसे आज क्यों कर रहे हैं? चिन्तन का बिन्दु यह होना चाहिए कि जो किया जा रहा है, वह आगम-सम्मत है या नहीं। बस, इससे आगे हमारा तर्क नहीं जाना चाहिए। अन्यान्य तर्क चिन्तन को विकृत या धुंधला बनाते हैं, सत्य का मार्गदर्शन नहीं करते। चिकित्सा का प्रश्न चल रहा था। अभी-अभी पांच-सात वर्ष पूर्व ही गुरुदेव ने एक विधि की घोषणा की-यदि विशिष्ट प्रयोजनवश कोई बड़ा आपरेशन कराए, बड़े दोष के लगने की संभावना हो तो वह काम भिन्न सामाचारी में किया जा सकता है। इसका तात्पर्य है कि वह साधक संघ की सामाचारी से भिन्न सामाचारी में चला जाता है। इससे उसका साधुपन नहीं चला जाता। उसे केवल प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। मैं इसे परिवर्तन नहीं मानता। यह तो केवल विधि का प्रयोग है, परिवर्तन नहीं। परिवर्तन तो तब हो कि छेद सूत्रों में ऐसी बातों का उल्लेख न हो। छेद सूत्र में उल्लेख है कि मुनि को गृहस्थ से अमुक-अमुक कार्य नहीं कराने चाहिए। यदि वह कराए तो प्रायश्चित्त का भागी होता है। यह प्रायश्चित्त जान-बूझकर कराए जाने वाले कार्यों के लिए ही तो आता है। यह अनजानी बात के लिए प्रायश्चित्त नहीं है। कोई आपरेशन कराता है। वह अनजाने में तो नहीं कराता, जान-बूझकर कराता है। उसे प्रायश्चित्त भी आता है। __ भगवती सूत्र में एक चर्चा है। एक मुनि खड़ा है। वह नग्न है। उसका मस्सा नीचे लटक रहा है। किसी वैद्य ने उसे देखा। उसके मन में दया आ गई। उसने सोचा-मुनि है। ध्यान कर रहा है। इसका मस्सा इसे कष्ट दे रहा है। बेचारा कष्ट में है। कौन इसकी चिकित्सा करेगा? वैद्य का मन करुणा से भर गया। उसने मुनि को सुला दिया। कुछ नहीं पूछा। उसने मस्से को काट दिया। अब प्रश्न होता है कि इस क्रिया से मुनि को क्या हुआ और वैद्य को क्या हुआ? इसका उत्तर यह है-मुनि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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