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________________ मानवीय एकता के सजग प्रहरी आचार्य तुलसी १५६ के लिए भी आचार संहिता होनी चाहिए। हम जातीयता व सांप्रदायिकता के आधार पर टिकट नहीं देंगे तथा सरकारी साधनों का उपयोग नहीं करेंगे। परिषद् में प्राप्त सुझावों को जोड़कर आचार संहिता का समर्थन किया गया। ___ सत्ता और संपत्ति के प्रति जितना आकर्षण है, उतना नैतिकता के प्रति नहीं है। इसीलिए इस आचार संहिता का अनुपालन नहीं हुआ। फिर भी इस प्रयत्न का अपना मूल्य है। धर्म के मंच से जनतंत्र की एक जटिल समस्या का समाधान प्रस्तुत करना अपने आप में एक महत्त्वपूर्ण घटना है। हिंसा की प्रबलता होती है, राष्ट्रीय एकता का विखण्डन। समाज, राष्ट्र या मानव-उन्हें जोड़ने का एक ही साधन है और वह है अहिंसा। असंतुलित अर्थव्यवस्था हिंसा को बढ़ावा देती है। हिंसा और अर्थ-संग्रह-दोनों में तादात्म्य संबंध है। हिंसा को परिग्रह की भाषा में और परिग्रह को हिंसा भाषा में प्रस्तुत किया जा सकता है। परिग्रह और हिंसा की समस्या को केवल दण्डशक्ति से नहीं सुलझाया जा सकता। गुरुदेव गंगाशहर (बीकानेर) विराज रहे थे। प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने राजीव गांधी को गुरुदेव के पास भेजा। गुरुदेव ने चिंतन के प्रसंग में कहा-आप इंदिराजी को बताएंगे कि केवल समाज व्यवस्था के बदलने से समस्या का समाधान नहीं होगा और केवल हृदय परिवर्तन से भी समस्या का समाधान नहीं होगा। समाज व्यवस्था और हृदय-दोनों के परिवर्तन का प्रयत्न एक साथ चले, तभी परिवर्तन की प्रक्रिया आगे बढ़ सकती है। एकता का सबसे बड़ा सूत्र है-हृदय परिवर्तन। इसे ध्यान से रखकर अहिंसा प्रशिक्षण की पद्धति का विकास किया गया। इसे विश्व मंच पर प्रस्तुत करने के लिए दो राष्ट्रीय कांफ्रेंस आयोजित की गईं। पहली कांफ्रेंस ५ से ७ दिसंबर १६८७ को जैन विश्व भारती लाडनूं में तथा दूसरी कांफ्रेंस १७ से २१ फरवरी १६६१ को राजसमन्द में आयोजित हुई। आचार्यश्री तुलसी के सान्निध्य में संपन्न उस गोष्ठी का निष्कर्ष था-अहिंसा के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं का संयुक्त राष्ट्रसंघ में एक मंच हो, अपना संयुक्त राष्ट्रसंघ हो। अहिंसा के क्षेत्र में प्रयोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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