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________________ मेघाष्टकम् २५ बम्बई में हमने देखा कि क्षणभर के लिए सारे मार्ग सूखे हुए हैं । आकाश स्वच्छ और धूप से. ललित है। क्षणभर के बाद देखा कि सारा आकाश मेघ से आच्छन्न है और वे मेघ जल से भरे-पूरे हैं । हे मेघ ! तुम सबसे ऊंचे घूमते हो, फिर भी तुम्हें यह ज्ञात नहीं है कि चंचलवृत्ति वाले, महान् होते हुए भी, जनता का विश्वास नहीं पा सकते। आश्रित्यानिलमूर्ध्वगा जलमुचो जानन्ति तत्त्वं न तत्, कुर्वन्तो गमनाङ्गणे चपलताकेलि हरन्ते मनः । स्तोकेनैव पलेन भूमिपतनं ते यान्त्यतयं ध्रुवमन्यालम्बनतो यदूर्ध्वगमनं तन्नास्ति रिक्तं भयात् ॥७॥ मेघ पवन के आश्रय से बहुत ऊंचे चले जाते हैं। वे तत्त्व को नहीं जानते । वे आकाश में चपल क्रीड़ा करते हुए लोगों का मन हर लेते हैं। वे थोड़े ही समय में अतर्कित रूप से भूमि पर गिर जाते हैं, क्योंकि दूसरों के सहारे ऊंचा चढ़ना खतरे से खाली नहीं होता ! धान्यं येभ्यो नयति कृषिको जीवनं सर्वलोकः, शैत्यं वातो नवरसमगः स्नेहमुर्वी प्रकर्षम् । जातो नूनं जलधरसुहृत् केवलं यन्मयूरः, गम्यं तस्माद् हृदयमितरद् भिन्नमावश्यकत्वम् ॥८॥ मेघों से कृषक धान्य पाता है ; सारे प्राणी जीवन पाते हैं; पवन ठंडक तथा वृक्ष नया रस प्राप्त करते हैं और भूमि प्रचुर स्निग्धता पाती है। किन्तु इतना होने पर भी जलधर का सुहृद् केवल मयूर ही बना है। इससे यह सत्य अभिव्यक्त होता है कि हृदय भिन्न होता है और आवश्यकता भिन्न । (वि० सं० २०११ चातुर्मास बम्बई) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003063
Book TitleAtula Tula
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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