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________________ के परिणमन हैं। वक्रता-वक्र-आचरण, अपने दोषों को ढांकने की मनोवृत्ति, परिग्रह का भाव, मिथ्या दृष्टिकोण, दूसरे के कर्म को भेदने की वृत्ति, अप्रिय कथन-ये कापोत-लेश्या के परिणमन हैं। __ शरीर-शास्त्रीय दृष्टि, योग-शास्त्रीय दृष्टि और लेश्या-दृष्टि-इन तीनों को हम तुलनात्मक दृष्टि से देखें । लेश्या के सिद्धान्त में जो तीन लेश्याएं हैं, योग-शास्त्र की दृष्टि में जो तीन चक्र हैं और शरीर-शास्त्रीय दृष्टि में जो एड्रीनल और गोनाड्स ग्रन्थियां हैं-इन सबका वर्णन समान-सा है। लेश्या का सिद्धान्त मानता है कि सारी आदतें तीन लेश्याओं में जन्म लेती हैं। योग-शास्त्र मानता है कि सारी आदतें तीन चक्रों में जन्म लेती हैं और शरीर-शास्त्र के अनुसार ये सारी आदतें दो ग्रन्थियों में जन्म लेती हैं। अद्भुत समानता है-तीन प्रतिपादनों में, यह सत्य स्पष्ट हो गया कि सारी बुरी वृत्तियां पेडू के पास वाले स्थान से लेकर नाभि के स्थान तक या हृदय के स्थान तक जन्म लेती हैं। इतना ही स्थान है इनका। इस सत्य को समझ लेने पर बदलने की बात को समझने में बहुत सरलता हो जाती है। शरीर के तीन भाग हैं-एक भाग है नाभि के ऊपर का जो ऊर्ध्वलोक कहलाता है। दूसरा भाग है-नाभि का जो तिर्यग् लोक या मध्यलोक कहलाता है। तीसरा भाग है-नाभि के नीचे का जो अधोलोक कहलाता है। आदतें या बुरी वृत्तियां अधोलोक में या मध्यलोक में जन्म लेती हैं। ऊर्ध्वलोक का भी कुछ हिस्सा आ जाता है। जब हमारा मन, हमारे विचार नाभि से नीचे के भाग में शक्ति केन्द्र तक दौड़ते रहते हैं, तथा बुरी वृत्तियां उभरती हैं, विकसित होती हैं। उनका चक्र चलता रहता है। बाद में आदत बन जाती है। उसका अनुबंध हो जाता है। हमें सबसे पहले यह करना होगा कि हमारा मन नाभि-केन्द्र पर न जाए। उसे हृदय से ऊपर के भाग में यात्रा करने दें। उसी भाग में लगाए रखें। हमारा मन यदि ऊपरी भाग की यात्रा में लगा रहेगा तो आदतों में स्वतः परिवर्तन होना शुरू हो जाएगा। मन की यात्रा जितनी नीची होगी उतनी आदतें बिगड़ती जाएंगी। आदतों का बनना-बिगड़ना मन के रमण और विरमण पर आधृत है। मन शरीर के नीचे के भाग में रमण ७ आभामंडल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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