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________________ अभिव्यक्त हो पाता है। चित्त-तंत्र केवल ज्ञेय का, जानने का साधन मात्र है। अध्यवसाय की अनेक रश्मियां फूटती हैं। उसके अनेक स्पंदन अनेक दिशाओं में आगे बढ़ते हैं। 'असंखेज्जा अज्झवसाणठाणा'--'अध्यवसाय के असंख्य स्थान हैं।' लोक के जितने आकाश-प्रदेश हैं, उतने ही हमारे अध्यवसाय हैं। लोक-प्रदेश असंख्य हैं और अध्यवसाय भी असंख्य हैं। वे चित्त पर उतरते हैं। उनकी एक धारा चलती है। वह है भाव की धारालेश्या। अध्यवसाय की एक धारा, चित्त की एक धारा जो रंग के परमाणुओं से प्रभावित होती है, रंग के परमाणुओं के साथ जुड़कर भावों का निर्माण करती है, वह है हमारा लेश्या-तंत्र या भाव-तंत्र। इसके द्वारा ही सारे भाव निर्मित होते हैं। जितने भी अच्छे या बुरे भाव हैं, वे सारे लेश्या-तंत्र के द्वारा निर्मित होते हैं। अध्यवसाय प्रभावित करते हैं नाड़ी-संस्थान को, मस्तिष्क को। जब ये चित्त की दिशा में आगे बढ़ते हैं और जब ये लेश्या की दिशा में आगे बढ़ते हैं, तब ये प्रभावित करते हैं हमारी ग्रन्थियों को और उनके माध्यम से हमारे सारे शरीर-तंत्र को प्रभावित करते हैं। लेश्या की एक परिभाषा है-कर्म निर्झर। लेश्या कर्म का झरना है, कर्म का प्रवाह है। कर्म के प्रवाह जो प्रवाहित होकर बाहर आते हैं, वे ग्रन्थियों के माध्यम से बाहर आते हैं। ये हैं : ग्रन्थियों के स्राव, ग्रन्थियों के रसायन और रसानुबंध यानी कर्म का अनुभाग बंध। अनुभाग बंध भी रसायन है। कर्म का रसायन इन ग्रन्थियों के माध्यम से बाहर आकर हमारे समूचे तंत्र को प्रभावित करता है। अब तक भी बेचारे मन का कोई स्थान नहीं आया। यह चित्त-तंत्र और लेश्या-तंत्र हमारे क्रिया-तंत्र को प्रभावित करता है। क्रिया-तंत्र के तीन अंग हैं-मन, वचन और शरीर। क्रिया-तंत्र का एक अंग है-मन। वह तो एक पुर्जा है। इसका कार्य है-काम करना। मन का कार्य ज्ञान करना नहीं है। मन का कार्य कर्म को बांधना नहीं है। मन का कार्य कर्म को तोड़ना भी नहीं है। मन का काम है ऊपर से मिलने वाले निर्देशों का पालन करना, उनको क्रियान्वित करना। इसी प्रकार वचन भी निर्देशों की क्रियान्विति करता है और व्यक्तित्व की व्यूह-रचना : आत्मा और शरीर का मिलन-विन्दु २१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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