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________________ है । भरत का अहं इतना प्रबल हो गया कि वह भीतर जाने को तैयार नहीं था। कहा जाता है कि भरत का चक्ररत्न भीतर जाने को तैयार नहीं था । इसे हम रूपक मानें तो यह कहा जा सकता है कि भरत के अहंकार का चक्र अपनी आयुधशाला में जाने को तैयार नहीं था । वह बाहर ही घूमने को विवश था । परिणाम यह हुआ कि बारह वर्षों तक लड़ाइयां चलीं। यह इस युग का पहला महायुद्ध था। युद्ध का सूत्रपात हो गया। छोटी बात ने भयंकर रूप धारण कर लिया । यह सच है कि ध्यान करने वाले व्यक्तियों ने व्यवहार का कभी विघटन नहीं किया । व्यवहार का विघटन उन लोगों ने किया जिन्होंने ध्यान का कभी अभ्यास ही नहीं किया। लोगों में यह भय है कि ध्यान का अभ्यास करेंगे तो व्यवहार को तोड़ना पड़ेगा या व्यवहार टूटेगा । यदि ध्यान करने वाले व्यवहार को तोड़ेंगे तो वे उसी व्यवहार को तोड़ेंगे जिसकी कोई आवश्यकता नहीं है। सचाई यह है कि व्यवहार में उलझनें, समस्याएं और कठिनाइयां उन्हीं लोगों ने पैदा की हैं जिन्होंने अहं की साधना की है, ध्यान की साधना नहीं की हैं। मुझे आज तक भी नहीं लगा कि ध्यान करने वाले व्यक्तियों के द्वारा कहीं भी व्यवहार का लोप हुआ हो, खंडन हुआ हो या विघटन हुआ हो । आप इस भ्रान्ति को निकाल दें; यह भय निकाल दें कि यदि ध्यान में जाएंगे तो सामाजिक व्यवहार का क्या होगा? पारिवारिक व्यवहार का क्या होगा ? जीवन के व्यवहार का क्या होगा ? चेतना के जागरण का पहला लाभ है कि व्यवहार सुन्दर और स्वस्थ बनता है | चेतना के जागरण का दूसरा लाभ है कि व्यक्ति अच्छा जीवन जी सकता है और अच्छी मौत मर सकता है 1 जो व्यक्ति चेतना का जागरण नहीं करता, ध्यान में नहीं जाता, वह न अच्छा जीवन जी सकता है और न अच्छी मौत मर सकता है। जो अच्छी मौत नहीं मर सकता, वह अच्छा जीवन कैसे जी पाएगा? जिस व्यक्ति में जीवन के प्रति आसक्ति होती है वह अच्छी मौत नहीं मर सकता और जो व्यक्ति मौत से डरता रहता है, वह अच्छा जीवन नहीं जी सकता । अच्छा जीवन जीने के लिए यह जरूरी है कि मौत लेश्या : एक प्रेरणा है जागरण की २२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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