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________________ ६ लेश्या : एक प्रेरणा है जागरण की १. • कैवल्य - भीतर में जागना । २. • मूर्च्छा कर्म -तन्त्र को प्रभावित करती है, भाव-तन्त्र को नहीं । ३. • चेतना का जागरण कर्म-तन्त्र और भाव-तन्त्र - दोनों को प्रभावित करता है । ४. • जागृत चेतना से आभामंडल विशुद्ध बनता है I ५. • जागृत चेतना द्वारा सम्यग् दृष्टि का विकास होता है । उस अवस्था में * पदार्थ का उपयोग होता है किन्तु पदार्थ की प्रतिबद्धता नहीं होती । * पदार्थ केवल उपयोगिता का हेतु बनता है, सुख-दुःख का हेतु नहीं बनता । * सहिष्णुता का विकास होता है, घटना के प्रवाह में बह नहीं जाता । * अप्रभावित अवस्था का अनुभव होता है । * अविचलित चेतना का अनुभव होता है । ६. • जागृत चेतना की अवस्था में व्यवहार और परमार्थ- दोनों सफल होते हैं । ७. • मूर्च्छित चेतना वाला व्यक्ति जीवन के प्रति आसक्त होता है, इसलिए वह अच्छी मृत्यु से नहीं मर सकता । वह मृत्यु से भयभीत रहता है, इसलिए वह अच्छा जीवन नहीं जी सकता । जागृत चेतना वाला जीवन और मृत्यु के प्रति तटस्थ होता है, इसलिए वह समाधि का जीवन जीता है और समाधि - मरण को उपलब्ध होता है । Jain Education International लेश्या : एक प्रेरणा है जागरण की २२१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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