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________________ ५. आभामण्डल और शक्ति-जागरण (१) १. • साधना द्वारा नये द्वार का उद्घाटन। २. • प्राकृतिक द्वार नये द्वार * काम * ब्रह्मचर्य * तनाव * शिथिलीकरण * विचार * निर्विचार * कोलाहल * मौन * वस्तु के विद्युत्-स्पंदन। * आंतरिक विद्युत् का स्पंदन। ३. • एनेलेटिकल साइकोलॉजी के प्रवर्तक चुंग ने कहा-'लिबिडो अर्थात् मानसिक शक्ति काम-शक्ति नहीं, किन्तु सामान्य शक्ति है। काम-शक्ति उसका एक भाग मात्र है। हम सब ज्योति की साधना के लिए उपस्थित हैं। ज्योति दो हैं-आत्मा की ज्योति और तैजस की ज्योति। हम दो ज्योतियों के बीच अपना उपक्रम कर रहे हैं। एक है आत्मा की ज्योति। वह जलती है, पर उसके प्रकाश का पता नहीं चलता। वह प्रकाश कभी बुझता नहीं। वह एक ऐसा दीप है जो निरंतर जलता रहता है। उसमें ईंधन की आवश्यकता नहीं होती। उसमें सहज ही ऐसी शक्ति है वह सदा प्रज्वलित रहता है। दूसरी है तैजस् की ज्योति। यह हमारे शरीर की ज्योति है। हमारा एक सूक्ष्म-शरीर है-तैजस् शरीर। ध्यान-काल में कभी स्फुलिंग सामने आते हैं, कभी चिनगारियां उछलती हैं और कभी रंग सामने आते हैं। ये रंग, चिनगारियां और स्फुलिंग-सारे ही तैजस्-शरीर में से निकलते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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