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________________ केन्द्र हैं, काम-वासना के केन्द्र हैं, ज्ञान के केन्द्र हैं। ऊर्जा जिस केन्द्र की ओर प्रवाहित होती है वह केन्द्र सक्रिय हो जाता है। वह प्रवृत्ति उभरकर सामने आ जाती है। अब प्रश्न है कि उस प्रवृत्ति को कैसे रोका जाए? इसमें सब एक मत नहीं हैं। कुछ लोग कहते हैं-जो वृत्ति जागे, उसे भोग लो। उसे रोकने की जरूरत नहीं, भोग लो। यह मुक्तभोग की विचारधारा है। यह विचारधारा कहती है-क्रोध आए तो क्रोध कर लो। इतना जी भर क्रोध कर लो कि जिससे क्रोध समाप्त हो जाए। जिसको मुक्तभाव से भोगा जाता है, वह क्रोध चरम-बिन्दु पर पहुंच कर विसर्जित हो जाता है। एक है दमन का सिद्धान्त। वह कहता है-दबाओ, दबाओ। क्रोध आए तो क्रोध को दबाओ। काम-वासना उभरे तो उसे दबाओ। जो भी वृत्ति उभरे, उसे दबाओ। दमन का सिद्धान्त बहुत व्यापक है। मनुष्य समाज में जीता है। वह सामाजिक प्राणी है। समाज में दमन चलता है। समाज की अपनी मान्यताएं हैं, अपनी धारणाएं हैं। समाज-व्यवस्था चाहता है। सामाजिक प्राणी नहीं चाहता कि जो भी वृत्ति जागे, उसका सामाजिक स्तर पर मुक्तभोग किया जाए। क्रोध जागे और क्रोध का मुक्तभोग किया जाए, यह सामाजिक प्राणी कभी नहीं चाहता। क्रोध जागे, कोई किसी के चांटा मार दे, लाठी मार दे या हत्या कर डाले तो समाज इसे बर्दास्त नहीं कर सकता। किसी में लोभ की वृत्ति जागे, वह दूसरे की संपत्ति पर अधिकार कर ले, लोभ का मुक्त भोग कर ले, समाज इसे मान्य नहीं कर सकता। समाज ने अपनी व्यवस्था बनाई। उसने कहा-दमन करो। तुम सामाजिक प्राणी हो, समूह में रहते हो, इसलिए तुम्हें दमन करना होगा। यह नहीं होगा कि जो मन में आया वह कर ले। ऐसा कभी नहीं हो सकता। सामाजिक भूमिका में दमन का विकास हुआ, नियंत्रण का विकास हुआ, दंड-व्यवस्था का विकास हुआ। दंड की सारी व्यवस्था समाज और राज्य ने की है। राज्य यह कभी सहन नहीं कर सकता कि एक व्यक्ति अपनी मुक्त वृत्तियों के कारण दूसरों के अधिकारों को हनन करे या जो चाहे वैसा करे। यह नहीं हो सकता। एक मर्यादा बनानी होगी। एक रेखा खींचनी होगी कि १५८ आभामंडल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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