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________________ 72 अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग भंडार खाली होता जा रहा है। आज के वैज्ञानिक ऊर्जा के नये स्रोतों की समाप्ति से चिन्तित हैं। पानी का अतिमात्रा में उपयोग किया जा रहा है। आशंका है कि एक दिन पीने का पानी दुर्लभ हो जाएगा। जंगलों और पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के परिणाम अनेक प्रदेश भुगत रहे हैं। वर्षा की कमी का बहुत बड़ा कारण माना जा रहा है पेड़ों का कट जाना। वर्तमान समस्या ___ इच्छा और भोग, सुखवादी और सुविधावादी दृष्टिकोण ने हिंसा को बढ़ावा दिया है और साथ-साथ पर्यावरण का संतुलन भी विनष्ट किया है। अहिंसा का सिद्धांत आत्मशुद्धि का है तो साथ-साथ वह पर्यावरण शुद्धि का भी है। पदार्थ सीमित हैं, उपभोक्ता अधिक हैं और इच्छा असीम है। अहिंसा का सिद्धांत हैइच्छा का संयम करना, उसकी काट-छांट करना। जो इच्छा पैदा हो, उसे उसी रूप में स्वीकार न करना, किंतु उसका परिष्कार करना। आज के वैज्ञानिक और उद्योगपति मनुष्य के सामने अधिक-से-अधिक सुविधा के साधन प्रस्तुत करना चाहते हैं, जो पहले कभी नहीं बने, वैसे पदार्थों का निर्माण कर उन्हें जनसाधारण के लिए सुलभ करना चाहते हैं। एक ओर जनता का सुविधावादी दृष्टिकोण बन गया। दूसरी ओर सुविधा के साधनों के निर्माण की होड़ लगी हुई है। जीवन की अनिवार्य आवश्यकताएं कुछ गौण बन गई हैं, सुविधा के साधन और प्रसाधन-सामग्री- ये मुख्य बन गए हैं। इस स्थिति में अनावश्यक हिंसा बढ़ी है और साथ-साथ पर्यावरण का संतुलन भी बिगड़ गया है। हिंसा और अहिंसा का प्रारंभिक बिन्दु आज पर्यावरण के प्रदूषण का कोलाहल बहुत हो रहा है । पर वह प्रदूषण कैसे मिटे? सुविधावादी आकांक्षा की आग जले और प्रदूषण का धुंआ न उठे, यह कब संभव है? अहिंसा के सिद्धांत की उपेक्षा कर पर्यावरण प्रदूषण की समस्या को सुलझाया नहीं जा सकता। जिस प्रकार उद्योग जगत् और व्यवसाय जगत् मनुष्य को अधिक-से-अधिक सुविधावादी बना रहा है, उसी प्रकार अहिंसानिष्ठ लोग उसे अहिंसक बना सकें. तभी पर्यावरण के प्रदूषण की समस्या का समाधान संभव बन सकता है। अहिंसा को बहुत स्थूल अर्थ में समझा जा रहा है, उसकी गहराई में जाने का प्रयत्न कम हो रहा है । हिंसा का प्रारंभिक बिंदु किसी को मार डालना नहीं है और अहिंसा का प्रारंभिक बिंदु किसी को न मारना ही नहीं है। हिंसा का प्रारंभिक बिन्दु है- दूसरे जीवों के अस्तित्व को न स्वीकारना, पदार्थ के अस्तित्व को भी न स्वीकारना। अहिंसा का प्रारंभिक बिंदु है- छोटे-से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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