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________________ 33 अहिंसा का व्यावहारिक स्वरूप रहे । उस संतुलन की दृष्टि से योगासनों का बहुत मूल्य है। योगासन संतुलन बनाते हैं । वे मांसपेशियों को भी स्वस्थ बनाते हैं और साथ-साथ मस्तिष्क को भी स्वस्थ बनाते हैं। दोनों में संतुलन रहता है। आसन और अहिंसा हमें हिंसा और अहिंसा की चर्चा करनी है। हिंसा और अहिंसा का आसनों से क्या संबंध है ? इस संबंध को खोजना है। हमारे शरीर में बहुत प्रकार के एसिड बनते हैं। उनकी मात्रा बढ़ती है तो संतुलन बिगड़ता है और आदमी की मनोवृत्ति बदल जाती है। वह क्रोधी, अपराधी और क्रूर हत्यारा तक बन सकता है। योगासन के द्वारा एसिड में संतुलन स्थापित किया जा सकता है। कुछ वैज्ञानिकों ने प्रयोग करके देखा है कि संतुलन स्थापित करने में ये बहुत उपयोगी हैं। जब हमारे रक्त में, मस्तिष्क में, मूत्र में एनिमो एसिड की मात्रा बढ़ जाती है तो आदमी हिंसक बन जाता है, क्रूर बन जाता है और हत्यारा बन जाता है। इनकी मात्रा में एक संतुलन स्थापित करना योगासन के द्वारा संभव है। आसनों के द्वारा वैसा किया जा सकता है और वह संतुलन होता है तो आदमी संतुलित हो जाता है। हिंसा की मनोवृत्ति पैदा करने में इन एसिडों का बहुत बड़ा हाथ है। कुछ रसायन और ये एसिड आदमी को उग्र बना देते हैं, व्यक्ति की मनोवृत्ति बदल जाती है, आदमी क्रूर और हत्यारा बन जाता है। हम अहिंसा की दृष्टि से विचार करें और यह सोचें कि किस प्रकार व्यक्ति को अहिंसक बनाया जा सकता है ? सही निदान को प्राथमिकता एक बीमार आदमी की जांच की जाती है, निदान किया जाता है कि बीमारी क्या है ? उस निदान के लिए अनेक यंत्र हैं। वैसे ही मानसिक स्वास्थ्य और भावात्मक स्वास्थ्य के लिए हमें निदान करने की जरूरत है। क्या-क्या कारण हैं, कौन-कौन से हेतु हैं और कौन-कौन से तत्त्व अधिक सक्रिय हो गए हैं, जिसके कारण यह बच्चा या यह युवक क्रूर बन गया, उग्र बन गया, अपराधी बन गया, हत्यारा बन गया। इन सारे कारणों की खोज जरूरी है। यदि निदान ठीक हो गया तो उपचार ठीक किया जा सकेगा। बीमारी कुछ होती है, निदान कुछ होता है और इलाज कुछ हो तो कुछ बनता नहीं है। सही बीमारी और सही निदान हो तो ही काम चल सकता है। एक व्यक्ति वैद्य के पास पहुंचा और बोला- आंख में दर्द है। वैद्य ने दवा दे दी। उसने फिर पूछा- वैद्यजी ! आंख में लगेगी तो नहीं? वैद्य ने कहाएक बार तो जलन होगी, फिर ठंडी हो जाएगी। वह घर पर आया और दवा को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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