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________________ 82 अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग पीछे परस्परता का सूत्र होता है तो भेद समस्या नहीं बनता। स्वामी काम लेना चाहता है और नौकर काम करना नहीं चाहता। यह समस्या परस्परता के अभाव में पनपती है। नौकर चाहता है, काम कम से कम करूं और पैसा अधिक से अधिक लूं। मालिक चाहता है, अधिक से अधिक काम लूं और कम से कम पैसा दूं। उनमें परस्परता की अनुभूति नहीं है। औद्योगिक जगत् में, व्यावसायिक जगत् में, शिक्षा के जगत् में-सब जगह झगड़ा चल रहा है और इसका कारण है- परस्परता की कमी। परस्परता की अनुभूति होने का अर्थ यह नहीं है कि स्वामी-सेवक का संबंध समाप्त हो जाए। उसका अर्थ है- स्वामी-सेवक के संबंध का दृष्टिकोण बदल जाए। परस्परता की अनुभूति का सूत्र विकसित होने पर एक स्वामी सोचेगा- उचित दाम दूं और उचित काम लूं। ठीक प्रकार से इसका भरण पोषण हो सके- यह व्यवस्था मुझे करनी है। नौकर का दृष्टिकोण होगा- मैं उचित ढंग से काम करूं। जितना काम करूं उससे ज्यादा पाने की चेष्टा न करूं। यह परस्परता की अनुभूति का परिणाम है। जरूरी है प्रशिक्षण और प्रयोग परस्परता की अनुभूति, मानवीय एकता की अनुभूति, आश्वास, विश्वास और अभय- ये हैं सह-अस्तित्व के आधार सूत्र । जब ये शिक्षा के अंग बनेंगे, सह-अस्तित्व का वातावरण बनेगा। जब सह-अस्तित्व का विकास होगा तब सामाजिक जीवन की समस्याओं का समाधान स्वतः उपलब्ध होगा। केवल बातों से या कुछेक वक्तव्यों से समस्या का समाधान खोजना चाहें, करना चाहें तो वह संभव नहीं है। इसके लिए प्रशिक्षण की गहरी जड़ों तक पहुंचना होगा। वहां पहुंचकर ही सामाजिक जीवन की जो सबसे बड़ी समस्या है, विरोध और भेद की समस्या है, उसका समाधान पाया जा सकता है। 4.2. आर्थिक जीवन और सापेक्षता जीवन के अनेक पहलुओं में आर्थिक पहलू संभवतः सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण और सबसे अधिक जटिल है। आर्थिक जीवन- यह वाक्य अनेक शब्दों की परिक्रमा कर रहा है। उसके दस पहलू हैं1. इच्छा 6. शोषण 2. आवश्यकता 7. अपराध 3. उपार्जनवृत्ति 8. हिंसा 4. स्वामित्व 9. अशांति 5. भोग 10. युद्ध इच्छा : प्राणी का लक्षण आर्थिक जीवन का पहला पहलू है- इच्छा । प्रत्येक प्राणी के साथ जुड़ी हुई जो सबसे पहली समस्या है वह है इच्छा। इच्छा प्राणी का एक लक्षण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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