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________________ संस्कृति के दो प्रवाह ये लोग सम्भवतः भौतिकवादी या सुखवादी विचारधारा अथवा संजयवेलटिठ पुत्त के संदेहवादी दृष्टिकोण से प्रभावित थे। कुछ श्रमण भी आत्मा ओर परलोक का अस्तित्व नहीं मानते थे। ____ अजातशत्रु ने भगवान् बुद्ध से कहा- "भन्ते ! एक दिन मैं जहां अजितकेशकम्बल था वहां गया और उससे परलोक, दान, धर्म आदि के विषय में प्रश्न पूछा । तब उसने कहा-'महाराज ! न दान है, न यज्ञ है, न होम है, न पुण्य या पाप का अच्छा बुरा फल होता है, न यह लोक है, न परलोक है, न माता है, न पिता है, न आयोनिज ( औपपातिक, देव) सत्व हैं और न इस लोक में वैसे ज्ञानी और समर्थ श्रमण या ब्राह्मण हैं जो इस लोक और परलोक को स्वयं जानकर या साक्षात् कर (कुछ) कहेंगे। मनुष्य चार महाभूतों से मिलकर बना है। मनुष्य जब मरता है तब पृथ्वी महापथ्वी में लीन हो जाती है, जल०, तेज, वायु० और इन्द्रियां आकाश में लीन हो जाती हैं। मनुष्य लोग मरे हुए को खाट पर रख कर ले जाते हैं, उसकी निन्दा, प्रशंसा करते हैं। हड्डियां कबूतर की तरह उजली हो (बिखर) जाती हैं और सब कुछ भस्म हो जाता है । मूर्ख लोग जो दान देते हैं, उसका कोई फल नहीं होता। अस्तिकवाद ( . आत्मा) झूठ है। मूर्ख और पण्डित सभी शरीर के नष्ट होते ही उच्छेद को प्राप्त हो जाते हैं। मरने के बाद कोई नहीं रहता।" __संजयवेलटिठपत्त भी परलोक के विषय में कोई निश्चय मत नहीं रखते थे । उसी बैठक में अजातशत्रु ने भगवान बुद्ध से कहा था-"भंते ! एक दिन मैं संजयवेलटिठ के पास गया और परलोक आदि के विषय में पूछा । तब संजयवेलटिठपत्त ने कहा-"महाराज ! यदि आप पूछे, क्या परलोक है और यदि मैं समझं कि परलोक है, तो आपको बतलाऊं कि परलोक है । मैं ऐसा तो नहीं कहता, मैं वैसा भी नहीं कहता, मैं दूसरी तरह से भी नहीं कहता, मैं यह भी नहीं कहता कि यह नहीं है, परलोक नहीं है । 'आयोनिज प्राणी नहीं हैं, हैं भी और नहीं भी, न हैं और नहीं हैं । अच्छे बुरे काम के फल हैं, नहीं हैं, हैं भी और नहीं भी, न हैं और न नहीं हैं ? ०। तथागत मरने के बाद होते हैं, नहीं होते हैं ? यदि मुझे ऐसा पूछे और मैं ऐसा समझं कि मरने के बाद तथागत न रहते हैं और न नहीं रहते हैं, तो मैं ऐसा आपको कहूं। मैं ऐसा भी नहीं कहता, मैं वैसा भी नहीं कहता०' ।" १. दीघनिकाय, ११२, पृ० २०-२१ । २. वही, ११२, पृ० २२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003060
Book TitleSanskruti ke Do Pravah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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