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________________ ५. श्रमण और वैदिक परम्परा की पृष्ठभूमि पहले हम श्रमण और वैदिक परम्परा के स्वतंत्र अस्तित्व, उनके विचार-भेद और श्रमण परंपरा की एकता के हेतुभूत सूत्रों का अध्ययन कर चके हैं। हम कुछ ऐसे तथ्यों का अध्ययन करेंगे, जो श्रमण और वैदिक परंपरा को विभक्त तो करते हैं, किन्तु सर्वथा नहीं। वे श्रमणों की एकसूत्रता के हेतु तो हैं, किन्तु सर्वथा नहीं। पूर्व में निर्दिष्ट सात हेतु श्रमण और वैदिक परंपग के विभाजन में तथा श्रमणों की एक सूत्रता में जैसे पूर्णरूपेण व्याप्त हैं, वैसे इस प्रकरण में बताए जाने वाले हेतु पूर्णतः व्याप्त नहीं हैं। फिर भी उनके द्वारा श्रमण तथा वैदिक परंपरा की पृष्ठभूमि को समझने में पर्याप्त सहायता मिलती है. इसलिए उनके विषय में चर्चा करना आवश्यक है। हमारे सामने आलोच्य विषय हैं--१. दान, २. स्नान, ३. कतवाद, ४. आत्मा और परलोक, ५. स्वर्ग और नरक तथा ६. निर्वाण । तैत्तिरीयारण्यक' का एक प्रसंग है कि एक बार प्राजापत्य आरुणी अपने पिता प्रजापति के पास गया और उसने प्रजापति से पूछा कि महर्षि लोग मोक्ष-साधन के विषय में किस साधन को परम बतलाते हैं ? प्रजापति ने कहा--- (१) सत्य से पवन चलता है, सत्य से सूर्य प्रकाश करता है, सत्य वाणी की प्रतिष्ठा है, सत्य में सर्व प्रतिष्ठित हैं, इसलिए कुछ ऋषि सत्य (सत्य वचन) को परम मोक्ष-साधन बतलाते हैं । (२) जो अग्नि आदि देवता हैं, वे तप से बने हैं। वाशिष्ठ आदि महर्षियों ने भी तप तपा और देवत्व को प्राप्त किया। हम लोग भी तप के द्वारा शत्रुओं को परास्त कर रहे हैं। तप में सर्व प्रतिष्ठित हैं, इसलिए कुछ ऋषि तप को परम मोक्ष-साधन बतलाते हैं। (३) दान्त पुरुष दम से अपने पापों का विनाश करते हैं। दम से १. तैत्तिरीयारण्यक, १०६३, पृ० ७६७-७७१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003060
Book TitleSanskruti ke Do Pravah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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