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________________ ५२ . संस्कृति के दो प्रवाह है। घोरखती है, घोरपराक्रमी है। इसकी अवहेलना मत करो, यह अवहेलनीय नहीं है । कहीं यह अपने तेज से तुम्हें भस्मसात् न कर डाले।' . - सोमदेव पुरोहित की पत्नी भद्रा के सुभाषित वचनों को सुन कर यक्षों ने ऋषि का वैयावृत्त्य (परिचर्या) करने के लिए कुमारों को भूमि पर गिरा दिया। वे घोर रूप वाले यक्ष आकाश में स्थिर होकर उन छात्रों को मारने लगे। उनके शरीर को क्षत-विक्षत और उन्हें रुधिर का वमन करते देख भद्रा फिर कहने लगी_ 'जो इस भिक्षु का अपमान कर रहे हैं, वे नखों से पर्वत को खोद रहे हैं, दांतों से लोहे को चबा रहे हैं, पैरों से अग्नि को प्रताडित कर रहे हैं। - 'यह महर्षि आशीविष-लब्धि से सम्पन्न है। उग्र तपस्वी है। घोरपराक्रमी है। भिक्षा के समय जो भिक्ष का वध कर रहे हैं, वे पतंग-सेना की भांति अग्नि में झंपापात कर रहे हैं । _ 'यदि तुम जीवन और धन चाहते हो तो सब मिल कर, सिर झुका कर इस मुनि की शरण में आओ। कुपित होने पर यह समूचे संसार को भस्म कर सकता है।' . उन छात्रों के सिर पीठ की ओर झुक गए। भुजाएं फैल गई। वे निष्क्रिय हो गए। उनकी आंखें खुली की खुली रह गईं। उनके मुंह से रुधिर निकलने लगा। उनके मुंह ऊपर को हो गए । उनकी जीभे और नेत्र बाहिर निकल आए। उन छात्रों को काठ की तरह निश्चेष्ट देख कर वह सोमदेव ब्राह्मण उदास और घबराया हुआ अपनी पत्नी-सहित मुनि के पास आ उन्हें प्रसन्न करने लगा 'भन्ते ! हमने जो अवहेलना और निन्दा की उसे क्षमा करें। 'भन्ते ! मूढ़ बालकों ने अज्ञानवश जो आपकी अवहेलना की, उसे आप क्षमा करे । ऋषि महान् प्रसन्नचित्त होते हैं। मुनि कोप नहीं किया करते।' मुनि ने कहा-'मेरे मन मे प्रद्वेष न पहले था, न अभी है और न आगे भी होगा। किन्तु यक्ष मेरा वैयावृत्त्य कर रहे हैं । इसीलिए ये कुमार प्रताडित हुए।' .. (सोमदेव)-'अर्थ और धर्म को जानने वाले भूतिप्रज्ञ (मंगलप्रज्ञा युक्त) आप कोप नहीं करते। इसलिए हम सब मिल कर आपके चरणों की शरण ले रहे हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003060
Book TitleSanskruti ke Do Pravah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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