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________________ संस्कृति के दो प्रवाह फल है।' कायोत्सर्ग से शारीरिक और मानसिक तनाव तथा भार भी नष्ट होते हैं । इन सारी दृष्टियों को ध्यान में रख कर उसे सब दुःखों से मुक्ति दिलाने वाला कहा गया है। भद्रबाहु स्वामी ने कायोत्सर्ग के पांच फल बतलाए हैं (१) देहजाड्यशुद्धि-लेष्म आदि के द्वारा देह में जड़ता आती है । कायोत्सर्ग से श्लेष्म आदि नष्ट होते हैं, अतः उनसे उत्पन्न होने वाली जड़ता भी नष्ट हो जाती है। (२) मतिजाड्यशुद्धि-कायोत्सर्ग में मन की प्रवृत्ति केन्द्रित हो जाती है। उससे बौद्धिक जड़ता क्षीण होती है। (३) सुख-दुःख-तितिक्षा-कायोत्सर्ग से सुख और दुःख को सहन करने की क्षमता उत्पन्न होती है। (४) अनुप्रेक्षा-कायोत्सर्ग में स्थित व्यक्ति अनुप्रेक्षाओं या भावनाओं का स्थिरता पूर्वक अभ्यास कर सकता है। (५) ध्यान-कायोत्सर्ग में शुभ-ध्यान का अभ्यास सहज हो जाता कायोत्सर्ग के दोष कायोत्सर्ग से तभी लाभ प्राप्त किया जा सकता है, जब उसकी साधना निर्दोष पद्धति से की जाए। प्रवचनसारोद्धार में उसके १९', योगशास्त्र में २१५ और विजयोदया में १६ दोष बतलाए गए हैं। आम्यन्तर तप के परिणाम भाव-शुद्धि, चंचलता का अभाव, शल्य-मुक्ति, धार्मिक दृढ़ता आदि प्रायश्चित्त के परिणाम हैं। १. उत्तराध्ययन, २६।१२ । २. वही, २६।३८,४१,४६,४६ । ३. आवश्यकनियुक्ति, गाथा १४६२ : देहमइजड्डसुद्धी, सुहदुक्खतितिक्ख य अणुप्पेहा । झायइ य सुहं झाणं, एयग्गो काउसग्गम्मि ॥ ४. प्रवचनसारोद्वार, गाथा २४७-२६२ । ५. योगशास्त्र, ३ । ६. मूलाराधना, २।११६, विजयोदया वृत्ति । ७. तत्त्वार्थ, ६।२२ श्रुतसागरीय वृत्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003060
Book TitleSanskruti ke Do Pravah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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