SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१० ३. शुद्धोदन - शाक आदि से रहित कोरा भात । ४. रूखा भोजन घृत-रहित भोजन । ५. आचामाम्ल - अम्ल - रस - सहित भोजन । ६. आयामोदन - जिसमें थोड़ा जल और अधिक अन्न भाग हो, ऐसा आहार अथवा ओसामण सहित भात | ७. विकटौदन - बहुत पका हुआ भात अथवा गर्म जल मिला हुआ भात । जो रस - परित्याग करता है, उसके तीन बातें फलित होती हैं'१. संतोष की भावना, २. ब्रह्मचर्य की आराधना और ३. वैराग्य । (५) कायक्लेश कायक्लेश बाह्य तप का पांचवां प्रकार है । उत्तराध्ययन २०।१७ में कायक्लेश का अर्थ 'वीरासन आदि कठोर आसन करना' किया गया है । स्थानांग में कायक्लेश के सात प्रकार निर्दिष्ट हैं १. स्थान कायोत्सर्ग, २. ऊकडू आसन ३. प्रतिमा आसन, ४. वीरासन, २. ऊकडू आसन, ३. प्रतिमा आसन, ४. वीरासन, ५. निषद्या, औपपातिक में कायक्लेश के अनेक प्रकार बतलाए गए हैं! १. स्थान कायोत्सर्ग, ६ आतापना, ७. वस्त्र त्याग, ८. अकण्डूयन --- खाज न करना, 8. अनिष्ठीवन - थूकने का त्याग और १०. सर्वगात्र - परिकर्म --- विभूषा का वर्जन । आचार्य वसुनन्दि के अनुसार आचाम्ल, निर्विकृति, एक-स्थान, १. मूलाराधना अमितगति २१७ : संतोष भावितः सम्यग् ब्रह्मचर्यं प्रपालितम् । दर्शितं स्वस्य वैराग्यं कुर्वाणेन रसोज्झनम् ॥ संस्कृति के दो प्रवाह २. स्थानांग, ७।४६ ३. औपपातिक, सूत्र १६ । Jain Education International ५. निषद्या, ६. दण्डायत और ७. लगण्डशयनासन । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003060
Book TitleSanskruti ke Do Pravah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy