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________________ १६६ उपलब्ध होते हैं १. समपादपुता । २. गोनिषधिका - गाय की तरह बैठना ।' ३. हस्तिशुण्डिका - पुतों के बल पर बैठ कर एक पैर को ऊंचा रखना । ४. पर्यङ्का । ५. अर्द्ध-पर्यङ्का । इनमें उत्कटिका और गोदोहिका नहीं हैं । उनके स्थान पर हस्तिfuser और गोनिषधिका हैं । यह परिवर्तन परम्परा भेद का सूचक है । स्थानांग, औपपातिक, बृहत्कल्प. दशाश्रुतस्कंध आदि आगमों में वीरासन, दण्डायत, आम्रकुब्जिका तथा उत्तरवर्ती ग्रन्थों में वज्रासन, सुखासन, पद्मासन, भद्रासन, शवासन, समपद, मकरमुख, हस्तिशुण्डि गोनिषद्या, कुक्कुटासन आदि आसन भी उपलब्ध होते हैं । " १. वीरासन - कुर्सी पर बैठने से शरीर की जो स्थिति होती है, उस स्थिति में कुर्सी के बिना स्थित रहना । १. बृहत्कल्पभाष्य, गाथा ५६५३, वृत्ति : यस्यां तु गोरिवोपवेशनं सा गोनिषधिका । २. वही, गाथा ५६५३, वृत्ति : यत्र पुताभ्यामुपविश्य एकं पादमुत्पाटयति सा हस्तिfuser | ३. (क) मूलाराधना, ३।३२४-२२५ : समपलियं कणिसेज्जा, गोदोहिया य उक्कुडिया | मगरमुह हत्थिसुंडी, गोणणिसेज्जद्धपलियंका ॥ वीरासणं च दंडा य, ****** | (ख) ज्ञानार्णव, २८।१० : संस्कृति के दो प्रवाह **** पर्यङ्कमर्द्धपर्यङ्क, वज्रवीरासनं तथा । सुखारविन्द पूर्वे च कायोत्सर्गश्च सम्मतः ॥ (ग) योगशास्त्र, ४।१२४ : वीर-वाज-भद्र-दण्डासनानि च । उत्कटिका गोदोहिका कायोत्सर्गस्तथासनम् ॥ (घ) अमितगति श्रावकाचार, ८।४५-४८ । (ङ) मूलाराधना, अमितगति, ३।२२३-२२४ : मस्फिगं समस्फिक्कं कृत्यं कुक्कुटकासनम् । बहुधेत्यासन साधोः कायक्लेश विधायिनः ॥ कोदण्डलगडादण्ड, कर्त्तव्या बहुधा शय्या, For Private & Personal Use Only Jain Education International शवशय्या पुरस्सरम् । शरीरक्लेशकारिणा ॥ www.jainelibrary.org
SR No.003060
Book TitleSanskruti ke Do Pravah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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