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________________ १५. विदेशों में जैन धर्म जैन साहित्य के अनुसार भगवान् ऋषभ, अरिष्टनेमि, पार्श्व और महावीर ने अनार्य- देशों में विहार किया था ।' सूत्रकृतांग के एक श्लोक से अनार्य का अर्थ 'भाषा-भेद' भी फलित होता है । इस अर्थ की छाया में हम कह सकते हैं कि चार तीर्थङ्करों ने उन देशों में भी विहार किया, जिनकी भाषा उनके मुख्य विहार क्षेत्र की भाषा से भिन्न थी । भगवान् ऋषभ ने बहली ( बैक्ट्रिया, बलख ), अडंबइल्ला (अटक - प्रदेश ), यवन (यूनान), सुवर्णभूमि ( सुमात्रा), पण्हव आदि देशों में विहार किया । पण्हव का सम्बन्ध प्राचीन पार्थिया ( वर्तमान ईरान का एक भाग) से है या पल्हव से, यह निश्चित नहीं कहा सकता । भगवान् अरिष्टनेमि दक्षिणापथ के मलय देश में गए थे ।" जब द्वारका - दहन हुआ था तब अरिष्टनेमि पल्हव नामक अनार्य- देश में थे ।" भगवान् पार्श्वनाथ ने कुरु, कौशल, काशी, सुम्ह, अवन्ती, पुण्ड्र, मालव, अंग, बंग, कलिंग, पांचाल, मगध, विदर्भ, भद्र, दशार्ण, सौराष्ट्र, कर्णाटक, कोंकण, मेवाड़, लाट, द्राविड़, काश्मीर, कच्छ, शाक, पल्हव, वत्स, आभीर आदि देशों में विहार किया था ।' दक्षिण में कर्णाटक, कोंकण, पल्हव, द्राविड़ आदि उस समय अनार्य माने जाते थे । शाक भी अनार्य प्रदेश है । इसकी पहिचान शाक्य- देश या शाक्य द्वीप से हो सकती है । शाक्य भूमि नेपाल की उपत्यका में है। वहां भगवान् पार्श्व के अनुयायी थे । भगवान् बुद्ध का चाचा स्वयं भगवान् पार्श्व का श्रावक था । शाक्यप्रदेश में भगवान् का विहार हुआ हो, यह बहुत सम्भव है । भारत और शाक्य - प्रदेश का बहुत प्राचीन काल से सम्बन्ध रहा है । १. आवश्यकनिर्युक्ति, गाथा २५६ ॥ २. सूत्रकृतांग, १।१।४२ । ३. आवश्यकनिर्युक्ति, गाथा ३३६-३३७ । ४. हरिवंशपुराण, सर्ग ५६, श्लोक ११२ । ५. उत्तराध्ययनवृत्ति, सुखबोधा, पत्र ३६ । ६. सकलकीर्ति, पार्श्वनाथ चरित्र, १५/७६ - ८५; २३।१७- १६ । ७. अंगुत्तरनिकाय की अट्ठकथा, भाग ५, पृ० ५५६ । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003060
Book TitleSanskruti ke Do Pravah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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