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________________ कर्मवाद और लेश्या १३१ उत्तराध्ययन ( ३४।३ ) में लेश्या का ग्यारह प्रकार से विचार किया गया है'(१) नाम' १. कृष्ण २. नील ३. कापोत (२) वर्णं' १. कृष्ण२. नील ३. कापोत ४. तेजस् ५. पद्म— ६. शुक्ल (३) रस * १. कृष्ण२. नील- ३. कापोत ४. तेजस्— ५. पद्म— ६. शुक्ल (४) गंध' १. कृष्ण२. नील ३. कापोत ४. तेजस् ५. पद्म ६. शुक्ल १. उत्तराध्ययन, ३४।२ २. वही, ३४।३ । ३. वही, ३४।४-६ ४. वही, ३४।१०-१५ । ५. वही, ३४।१६-१७ । Jain Education International मेघ की तरह कृष्ण अशोक की तरह नील अलसी पुष्प की तरह हिंगुल की तरह रक्त हरिताल की तरह पीत शङ्ख की तरह श्वेत । ४. तेजस् ५. पद्म ६. शुक्ल । तुम्बे से अनन्त गुना कड़वा त्रिकुट ( सोंठ, पिप्पल और काली मिर्च) से अनन्त गुना तीखा के से अनन्त गुना कसैला पके आम से अनन्त गुना अम्ल - मधुर आसव से अनन्त गुना अम्ल, कसैला और मधुर खजूर से अनन्त गुना मधुर मृत " 21 11 मटमैला सर्प की गंध से अनन्त गुना अमनोज्ञ " 11 "} " 11 31 सुरभि कुसुम की गंध से अनन्त गुना मनोज्ञ 11 11 23 33 37 For Private & Personal Use Only 11 www.jainelibrary.org
SR No.003060
Book TitleSanskruti ke Do Pravah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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