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________________ १०० एकला चलो रे शराब स्नायविक मांग बन जाती है। समय आते ही स्नायु शराब की मांग करते हैं और तब आदमी को शराब पीनी ही पड़ती है । उसका संकल्प ढीला बन जाता है । तब उसका यह कथन यथार्थ की तुलना में तुलता है-पहले मैं शराब पीता था, अब शराब मुझे पी रही है। प्रत्येक आदत का एक नियम होता है । प्रारम्भ में आदमी शौकियाना उस वस्तु का सेवन करता है। दो-दस बार उसका सेवन करता है और वह वस्तु उसको पकड़ लेती है । एक संस्कृत कवि ने इसी भावना को बहुत ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है-- करोत्यादौ किञ्चित् सघृणहृदयस्तावदशुभं, द्वितीयं सापेक्षो विमृशति च कार्य प्रकुरुते । तृतीयं निःशंको विगतघृणमन्यत् प्रकुरुते, तत: पापाभ्यासात् सततमशुभेसु प्ररमते ॥ आदमी जब किसी अशुभ कार्य में या बुरी आदत में प्रवृत्त होता है तब उसके मन में प्रारम्भ में घृणा होती है । वह उस कार्य को करना नहीं चाहता, पर वह वैसे ही उसे कर डालता है। दो-तीन बार करने के पश्चात् वह आदत स्नायुगत हो जाती है और फिर उसे वह सतत करनी पड़ती है । उससे छुटकारा तब सरल नहीं होता। आदमी की बहुत सारी आदतें स्नायुगत होती हैं। पहली बार जब कोई भी व्यक्ति सीढ़ियों पर चढ़ता है, तब बहुत सावधानी बरतता है। उन्हीं सीढ़ियों से दो-चार बार उतरने-चढ़ने के पश्चात् उतनी सावधानी अपेक्षित नहीं होती । पर अपने आप चढ़ते-उतरते हैं । यह स्नायुगत अभ्यास है। नशे की आदत भी स्नायुगत हो जाती है। उसे छोड़ना तब सरल नहीं होता। क्या शराब पीने वाला या तम्बाकू पीने वाला नहीं जानता कि इन वस्तुओं के सेवन से उसका स्वास्थ्य बिगड़ता है, आर्थिक हानि उठानी पड़ती है ? वह यह जानता है। अच्छी तरह से जानता है और उन्हें छोड़ना भी चाहता है, पर वह छोड़ नहीं सकता, क्योंकि वे स्नायविक मांग बन चुकी होती हमने पढ़ा कि अमेरिका में सैनिकों को ध्यान का प्रयोग कराया जा रहा है । उसका कारण यह है कि उनमें शराब की आदत बहुत बढ़ गई है । उनका स्वास्थ्य गिरता जा रहा है। सरकार चिन्तित है । उनमें अपराध बढ़ रहे हैं। जब चेतना जागृत होती है तब अपराध कम होते हैं। ध्यान चेतना-जागृति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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