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________________ अपनी ओर से भगवान् महावीर ने जैन मुनियों के लिए नवकल्पिक विहार का निर्देश दिया है । मार्गशीर्ष से आषाढ़ तक आठ महीनों के आठ कल्प और श्रावण से कार्तिक तक चार महीनों (चातुर्मास ) का एक कल्प । इस विधानानुसार साधु शेषकाल में एक क्षेत्र में एक महीना और चातुर्मास में चार महीने प्रवास करते हैं। अपने प्रवास - काल में वे स्वयं ज्ञान-दर्शनचारित्र की आराधना करते हुए जन-जन को आध्यात्मिक उपदेशों द्वारा कल्याण - मार्ग की ओर अग्रसर करते हैं । तेरापंथ धर्मसंघ का अभ्युदय वि० सं० १८१७ आषाढ़ शुक्ला पूर्णिमा को हुआ । उसके आद्य प्रवर्त्तक आचार्य भिक्षु थे । वर्तमान में नवमाचार्य श्री तुलसीगणी हैं। प्रारंभ से अब तक सवा दो सौ वर्षों (सं० १८१७ से २०४२ तक ) में तेरापंथ धर्मसंघ में कुल २२७२ दीक्षाएं ( साधु- ७४३ + साध्वियां१५२६) हो चुकी हैं । तेरापंथ के संविधान एवं मर्यादानुसार समूचे धर्मशासन का नेतृत्व एक आचार्य ही करते हैं । साधु-साध्वियों के रहन-सहन, खान-पान, शिक्षा, विहार आदि की समग्र व्यवस्था उनके द्वारा होती है । मर्यादा- महोत्सव के समय आचार्यप्रवर अग्रगण्य साधु-साध्वियों के चातुर्मासों की घोषणा करते हैं (देखें मुख पृष्ठ पर दिया गया चित्र ) । साधु-साध्वी करबद्ध होकर उसे शिरोधार्य करते हैं और यथानिर्दिष्ट क्षेत्रों में विहरण एवं चातुर्मास सम्पन्न करते हैं । तेरापंथ के आचार्यों एवं १८१७ से २०४२ तक) भारत के ४२५ चातुर्मास हो चुके हैं । उन पावस- प्रवास' में किया गया है । श्रमण श्रमणी परिवार के अब तक (सं० १५ प्रांतों एवं नेपाल क्षेत्रों में लगभग सबका संकलन यद्यपि आज से Jain Education International प्रस्तुत पुस्तक 'तेरापंथ तीस साल पूर्व सुजानगढ़ १. स्थविरावस्था एवं अस्वस्थता आदि विशेष कारण से साधु एक क्षेत्र में स्थायी प्रवास भी कर सकते हैं । साध्वियां शेषकाल में एक क्षेत्र में दो महीनें रह सकती हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003055
Book TitleTerapanth Pavas Pravas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavratnamalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages542
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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