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________________ ८३ व्यक्तित्व के विविध रूप चाहिए, क्यों डरना चाहिए और क्यों नहीं डरना चाहिए, इन सूत्रों का विवेक करना हमारे लिए बहुत जरूरी है। एक प्रश्न है, भयग्रस्त कौन? जो मूढ़ है, वह भयग्रस्त है। जो भयग्रस्त है, वह मूढ़ है। मूढ़ और मूर्ख एक नहीं हैं। मूढ़ वह होता है, जिसमें घनीभूत मूर्छा होती है और मूर्ख वह होता है, जिसमें समझ कम होती है। जो जड़ है, वह भय के स्थान को पकड़ ही नहीं पाता। जो मन से दुर्बल है, वह भी भयभीत रहता है। सारा संसार भय से आकुल होता है, जो न मूढ़ होता है और न जड़। न डरें, न डराएँ भगवान महावीर की साधना का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र ‘अभय' है। वह तभी सिद्ध हो सकता है, जब हम यह संकल्प करें कि हम दूसरों को डराएँ नहीं, सताएँ नहीं, दूसरों को कष्ट नहीं देंगे, अपनी ओर से दूसरों का तिलमात्र भी अनिष्ट नहीं करेंगे। जैसे-जैसे यह चेतना जागती जाएगी, अभय की चेतना अपने आप विकसित होती चली जाएगी। एक ओर अभय की अनुप्रेक्षा करें, दूसरी ओर आरम्भ और परिग्रह का भाव पुष्ट बनता चला जाए, तो अभय की साधना विफल हो जाएगी। हम भय और लोभ की भावना को पुष्ट न होने दें, अभय हमारे जीवन में स्वतः घटित होगा। प्रतिक्रिया से बचाव लोग जानना चाहते हैं, मेरे जीवन के बारे में, मेरे विकास के बारे में। पूछते हैं कि आपने इतना अधिक कैसे लिखा? इतना विकास कैसे किया? मैं बताना चाहता हूँ कि मुझे एक सूत्र मिला और वह सूत्र मेरे जीवन में सहज व्याप्त हो गया। वह सूत्र है, 'प्रतिक्रिया से मुक्त रहना।' हिंसा के दो रूप हैं-प्रतिक्रिया और प्रतिशोध । मारना भी हिंसा है, पर आदमी हमेशा किसी को मारने की मुद्रा में नहीं रहता, वह रोज किसी को मारता भी नहीं है। यदि वह रोज किसी को मारने लगे तो स्वयं पागल हो जाए। मारने की बात तो कभी-कभी जीवन में आती है। कोई आदमी अपराधी होता है, क्रूर होता है तो जीवन में किसी को मार डालता है। यह मारने वाली हिंसा हमारी दुनिया में कम चलती है। ज्यादा प्रतिक्रियात्मक हिंसा चलती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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