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________________ ५८ जो सहता है, वही रहता है है । दोनों प्रकार के आलंबन हमारे सामने उपयोगी बनते हैं । प्राचीन आचार्यों ने मुनिचर्या के प्रसंग में कुछ आलंबनों की सूचनाएँ दी हैं। उन्होंने कहा- 'अमुक स्थिति आ जाए, तो अमुक आलंबन का सहारा लो ।' एक स्थिति आई। आहार नहीं मिल रहा है, उपर्युक्त आहार नहीं मिल रहा है। भूख को कैसे सहा जाए? इसका आलंबन सूत्र है- 'धम्मोत्ति किच्चा' भूख को सहना मेरा धर्म है । सामने यह आलंबन रखो, 'यह मेरा धर्म है ।' अभक्ष्य नहीं खाना मेरा धर्म है । अभक्ष्य मिले और उपर्युक्त आहार न मिले तो भूखे रहना मेरा धर्म है । इस धर्म के आलंबन के सहारे उस कठिनाई को पार किया जा सकता है। यह एक बहुत बड़ा आलंबन बनता है। किसी ने कठोर बात कही, कड़वे शब्द कहे, रूखे शब्द कहे, गाली दी, तब स्वाभाविक है क्रोध, उत्तेजना एवं आवेश आना । जब पुष्ट आलंबन होता है, तो आदमी बच सकता है। एक बहुत महत्त्वपूर्ण आलंबन दिया था कि कोई कुछ कहे, सीख दे, कड़ी बात कहे, कठोर वचन कहे, उस समय तत्त्व पर चिंतन करो, खोज करो आक्रुष्टेन मतिमता, तत्वर्थान्वेषणे मतिः कार्या । यदि सत्यं कः कोपः यद्यनृतं किन्नु कोपेन ? । । 'क्या सचमुच मैंने ऐसा किया है ? जो यह कह रहा है, क्या इसमें कोई सच्चाई है ? यदि सच्चाई है तो क्रोध क्यों करना चाहिए ?' यह सोचना चाहिए कि यह सही कह रहा है। मैंने यह प्रमाद किया। मुझसे यह गलती हुई है, भूल हुई है, यह ठीक कह रहा है। मुझे सच्चाई को स्वीकार करना है, ऋजुभाव से स्वीकार करना है। उसे कहना है कि तुम जो कह रहे हो, वह ठीक है । मुझसे ऐसा हो गया। यदि बात सच नहीं है, केवल भ्रमवश, संदेहवश या कल्पनावश ऐसी बात कही जा रही है, तो सोचो कि वह जो कुछ कह रहा है, वह मुझ पर लागू ही नहीं होता। फिर मैं क्रोध क्यों करूँ ? यह बात मुझ पर आ ही नहीं रही, किसी और पर जाती है, मैं लड़ाई को अपने सिर पर क्यों मोल लूँ?' बहुत सारी बातें होती हैं, बहुत बकवास होती हैं, बहुत गालियाँ चलती हैं, लेकिन मुझ पर कोई असर नहीं, मेरा इससे कोई संबंध नहीं। मुझे आवेश में क्यों आना चाहिए? यह बहुत पुष्ट आलंबन दिया है। बात यदि सच है तो क्रोध करना व्यर्थ है । क्रोध मत करो। यदि झूठी बात है, तुम पर लागू ही नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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