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________________ अंतर्यात्रा हमारे नाड़ीतंत्र के तीन भाग हैं - अनुकंपी, परानुकंपी और केन्द्रीय नाड़ी संस्थान । अनुकंपी और परानुकंपी - दोनों के मध्य है केन्द्रीय नाड़ी-संस्थान नाम की एक नाड़ी । उस नाड़ी में चेतना का प्रवेश, इसका नाम है अंतर्यात्रा। जीवन चलाना है तो उसके लिए कार्य करना होता है और कार्य करने के लिए बाहर आना होता है । बाहर आने के दो मार्ग हैं-अनुकंपी और परानुकंपी। हठयोग की भाषा में इन्हें कहा जाता है - इड़ा नाम का प्राण-प्रवाह और पिंगला नाम का प्राण-प्रवाह । जब भीतर रहना होता है तब चेतना इन दोनों प्रवाहों को छोड़कर केन्द्रीय नाड़ी संस्थान में चली जाती है, सुषुम्ना या मेरुदण्ड में चली जाती है। रीढ़ की हड्डी के भीतर रहना अंतर्यात्रा है और दाएं-बाएं आ जाना बहिर्यात्रा है । अंतर्यात्रा : दो पहलू ___ एक बात के अनेक पहलू हो सकते हैं और हमें उस पर अनेक पहलुओं से ही विचार करना चाहिए । जैन परिभाषा के दो महत्त्वपूर्ण शब्द हैं-द्रव्य और भाव । सुषुम्ना के भीतर चेतना का प्रवेश, यह अंतर्यात्रा की परिभाषा का एक पहलू है और इसे द्रव्य पहलू कहना चाहिए। जितना मूल्य भाव पहलू का है, उतना मूल्य द्रव्य पहलू का नहीं है। हमें द्रव्य के साथ-साथ भाव पहलू पर भी ध्यान देना होगा । अंतर्यात्रा का अर्थ है-सम्यग् दर्शन । जब तक सम्यक्त्व नहीं होता तब तक अन्तर्यात्रा नहीं होती । अंतर्यात्रा की यह परिभाषा उसका भावात्मक पहलू है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003053
Book TitleApna Darpan Apna Bimb
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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