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________________ ७० अपना दर्पणः अपना बिम्ब साठ हजार वर्ष तक कोई प्रतिमा ही खड़ी रह सकती है। ऐसा कायोत्सर्ग करने वाला व्यक्ति प्रतिमा की तरह ही स्थिर और निश्चल होता होगा । कायोत्सर्ग : विशोधन कायोत्सर्ग का दूसरा प्रयोजन है - विशोधन । विशुद्धि के लिए कायोत्सर्ग किया जाता है । एक जैन श्रावक और मुनि प्रतिक्रमण करता है । प्रतिक्रमण का एक अंग है कायोत्सर्ग । साधक इस संकल्प के साथ कायोत्सर्ग को स्वीकार करता है मैं पूर्वकृत प्रमाद के परिष्कार, प्रायश्चित्त, विशोधन और शल्य - विमोचन द्वारा पाप कर्मों को नष्ट करने के लिए कायोत्सर्ग करता हूं'तस्स उत्तरीकरणेणं पायच्छित्तकरणेणं विसोहिकरणेणं विसल्लीकरणेणं पावाणं कम्माणं निग्घायणट्ठाए ठामि काउस्सग्गं ।' शल्य - विमोचन का उपाय आचार्य हेमचंद्र ने भगवान् महावीर की स्तुति में लिखा- प्रभो ! केवल शिथिलीकरण और कायोत्सर्ग के द्वारा आपने मनःशल्य को दूर कर दिया । मनः वचःकायचेष्टाः, कष्टाः संहृत्य सर्वथा । श्लथत्वेनैव भवता, मनःशल्यं वियोजितम् ।। विशल्यीकरण की प्रक्रिया बहुत महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है । बाहर के शल्य तो भर जाते हैं पर भीतर का शल्य बहुत मुश्किल से भरता है। आंतरिक शल्य बहुत गहरा और कष्टदायी होता है । शल्य है अन्तर्व्रण । यह व्यक्ति को भीतर ही भीतर सालता रहता है । एक शल्य है माया । आदमी बहुत मायाजाल रचता रहता है । उसके भीतर इतने गहरे घाव हो जाते हैं कि वे भरते ही नहीं । कायोत्सर्ग एक उपाय है शल्य - विमोचन का, घावों को भरने का । पाप कर्मों का निर्जरण कायोत्सर्ग का सबसे बड़ा प्रयोजन है पाप कर्मों का निर्जरण करना । कर्मों को क्षीण करने का शक्तिशाली उपाय है कायोत्सर्ग । जब हमारा प्रयत्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003053
Book TitleApna Darpan Apna Bimb
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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