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________________ अपना दर्शन अपने द्वारा ६३ . यह चाहिए था-दूसरे को देखो । यदि ध्यान का यह पहला सूत्र होता तो हमारे लिए बहुत व्यावहारिक बनता। जहां समूह का जीवन है वहां अपने आपको देखने की बात कैसे उपयोगी हो सकती है ? शक्तिशाली तर्क ___ यह एक शक्तिशाली तर्क है पर कोई भी तर्क ऐसा नहीं होता, जिसके सामने कोई प्रतितर्क न हो सके । जहां अनुभव का प्रश्न है वहां प्रति-अनुभव नहीं होता क्योंकि उसमें सत्य का साक्षात्कार है । जैनेन्द्र जी प्रायः कहते थे-ध्यान करने वाला व्यक्ति आत्मरति हो जाता है । वह अपने आप में रमण करने लगता है और समाज से कट जाता है इसलिए समाज के लिए वह उपयोगी नहीं बनता । जैनेन्द्रजी एक शिविर में तीन सप्ताह तक रहे पर अपनी इसी अवधारणा के कारण वे ध्यान के प्रयोग में कभी नहीं आए । इन्द्रियां और ज्ञान 'आत्मा के द्वारा आत्मा को देखो' - इस सूत्र के संदर्भ में दो प्रश्न हमारे सामने हैं । पहली बात है - ज्ञान इन्द्रियाधीन है, यह एक प्रान्ति है। हम भ्रान्ति को तोड़ें । यह ज्ञान की सीमा नहीं है । इन्द्रियां ज्ञान का आदि-बिन्दु है पर वह ज्ञान की सीमारेखा नहीं है । हमें इन्द्रियों की सीमा से परे जाकर ध्यान करना है, अतीन्द्रिय चेतना की सीमा में पहुंचकर ध्यान करना है। इसका अर्थ है-जो ज्ञान है, वह इन्द्रियाधीन ही नहीं है किन्तु इन्द्रियों से परे भी है। इन्द्रियों से परे है मन, मन से परे है बुद्धि और बुद्धि से परे जो है, वह है परमात्मा । इन्द्रियाणि पराण्याहु, इन्द्रियेभ्यो परं मनः । मनसस्तु परा बुद्धिः, यो बुद्धेःः परतस्तु सः ।। ध्यान के लिए इन्द्रियों की सीमा को लांघना आवश्यक है । ध्यान वही व्यक्ति कर सकता है, जो इन्द्रिय , मन और बुद्धि की सीमा को तोड़कर प्रज्ञ. की सीमा में प्रवेश कर जाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003053
Book TitleApna Darpan Apna Bimb
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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