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________________ ग्यारह आधुनिक विज्ञान के आविष्कार और उनकी निष्पत्तियां अनेक आगमिक एवं दार्शनिक गुत्थियों को सुलझाने वाली हैं। महाप्रज्ञ साहित्य का गंभीर अध्ययन करने वाला व्यक्ति इस तथ्य को हृदयंगम कर सकता है। बिम्ब को जानने के लिए प्रतिबिम्ब को जानना आवश्यक है और आवश्यक है प्रतिबिम्ब से परे जाना। प्रतिबिम्ब के दर्शन का अर्थ है इन्द्रिय और पदार्थ के योग से उत्पन्न अवबोध । बिम्ब के दर्शन का अर्थ है-आत्मा के शुद्ध स्वरूप का बोध । प्रश्न हैक्या बिम्ब का साक्षात्कार किया जा सकता है? क्या प्रतिबिम्ब को भेदकर बिम्ब तक पहुंचना संभव है? वह दर्पण कौन सा है, जिसमें बिम्ब को देखा जा सके? युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ कहते हैंबिम्ब को देखा जा सकता है। प्रतिबिम्ब को भेदकर बिम्ब तक पहुंचा जा सकता है। प्रेक्षा वह दर्पण है, जिसमें बिम्ब का दर्शन किया जा सकता है। प्रेक्षा ध्यान की प्रक्रिया बिम्ब-आत्म दर्शन की प्रक्रिया है। उसका प्रसिद्ध सूत्र है-संपिक्खए अप्पगमप्पएणं आत्मा के द्वारा आत्मा को देखो। इसका अर्थ है-आत्मा ही दर्पण है, आत्मा ही बिम्ब है। युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ प्रेक्षाध्यान के पुरस्कर्ता हैं, संस्कर्ता हैं। जैन ध्यान योग की विच्छिन्न धारा को पुनरुज्जीवन महाप्रज्ञ की महान् उपलब्धि है। आचार्य श्री तुलसी द्वारा प्रदत्त जैन योग पुनरूद्धारक संबोधन इसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003053
Book TitleApna Darpan Apna Bimb
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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