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________________ श्रेय का बहुत सुन्दर विवेचन किया गया है । कहा गया- प्रेय वह नौका है, जो बीच में डुबो देती है। श्रेय पार पहुंचाने वाली नौका है। श्रेय है बंधनमुक्ति का मार्ग । जब यह श्रेय की बुद्धि जागती है, सारा चिंतन बदल जाता है । बहुत सारे लोग इस श्रेय के मार्ग को नहीं पकड़ पाते । प्रियोपदेश को तो पकड़ लेते हैं, किन्तु हितोपदेश को नहीं पकड़ पाते । प्रियता के प्रति हमारा यह आकर्षण जन्मजात है । पदार्थ के लिए मनुष्य सब कुछ कर सकता है, जहां प्रेय का आकर्षण है, वहां संग्रह की बात आएगी। जहां श्रेय का मार्ग सामने होगा, वहां आदमी अकिंचन बनने की बात सोचेगा, 'मुझे और कुछ नहीं चाहिए' इस स्थिति में आएगा । 1 हितोपदेष्टा कौन ? प्रिय का उपदेश देने वाला प्रियता का मार्ग समझा सकता है, हित का मार्ग नहीं समझा सकता । हित का उपदेश देने वाला दोनों मार्ग समझा सकता है । उसे दोनों का अन्तर ज्ञात है । एक अध्यापक कक्षा में गणित, भूगोल, इतिहास, अर्थशास्त्र आदि पढाता है, उसकी शिक्षा देता है, किन्तु उसे हितोपदेष्टा नहीं माना जा सकता। उसकी शिक्षा आजीविका के लिए है । विद्यार्थी भी पढ़ता इसलिए है कि आगे चल कर वह अच्छी आजीविका का साधन जुटा सके । उसमें हित का ध्यान नहीं होता । यदि हित का दृष्टिकोण होता तो पढ़ाई के साथ यह भी बताया जाता कि तुम्हें अपना जीवन कैसे बनाना है ? चरित्र - निपुण कैसे बनना है ? सबसे बड़ी शिक्षा है चरित्र की शिक्षा | वह नहीं दी जाती । कौन सुनता है हितोपदेश ? हितोपदेष्टा वह हो सकता है, जो स्वयं आत्मज्ञ बन गया, जिसने रागद्वेष को कम कर लिया, वीतराग बन गया या वह हितोपदेष्टा हो सकता है, जो वीतरागता की यात्रा पर निकल पड़ा है । हितोपदेश का अनुसरण भी वही कर सकता है, जिसका कर्मबंधन प्रगाढ़ नहीं है । जिस व्यक्ति के कर्म का बंधन बहुत सघन होता है, उसे हितोपदेश की बात अच्छी नहीं लगती । 1 ५४ Jain Education International For Private & Personal Use Only जैन धर्म के साधना - सूत्र www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
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