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________________ कर रहा है, उसी मार्ग पर चल रहा है । इस दुनिया में जितने भी लोग हैं, जो प्रवचनकार और उपदेशक हैं और सत्य का मार्ग बताते हैं, वे वास्तव में उत्तमोत्तम की दिशा में प्रस्थान करने वाले हैं। जो सत्य के स्थान पर असत्य का मार्ग बतलाते हैं, वे निश्चय ही अधमतम कोटि के हैं । वह व्यक्ति शायद अधम से अधम होता है, जो गलत रास्ता बताता है। उससे अधिक खतरनाक और कोई नहीं हो सकता ! वह अनंत जीवों का हिंसक है 1 नियुक्ति साहित्य में एक बहुत महत्वपूर्ण बात बताई गई है। एक व्यक्ति किसी प्राणी को मार रहा है या मारता है तो वह हिंसक है । दूसरा व्यक्ति किसी को यह कहता है कि क्यों फालतू डर रहे हो ? हरियाली पर पैर मत रखो, हरियाली मत खाओ, कच्चा पानी मत पीओ- यह सब बेकार की बातें हैं, इसमें हिंसा-अहिंसा जैसा कुछ नहीं है, सारहीन बातें हैं ये सब । न कोई मरता है, न जीता है । मरना - जीना सबकी नियति है | जो प्राणी जन्मे हैं, मरने के लिए ही तो जन्मे हैं। मनुष्य इस धरती का सबसे बड़ा और परिष्कृत प्राणी है, उसे यह अधिकार है कि वह अपने से छोटे प्राणियों को मारे - खाए । शास्त्रकार कहते हैं - एक व्यक्ति को मारने वाला उस व्यक्ति का ही हिंसक है, किन्तु ऐसी बातें कहने वाला अनंत जीवों का हिंसक है। उसने इतना गलत उपदेश दे दिया कि जिससे सारे लोग भ्रान्त हो गए। सब लोग मुक्त हो गए जीवों को मारने के लिए । असत्य पथ की ओर ले जाने वाला सबसे अधम व्यक्ति होता है । उसका कार्य या चिंतन भी अधम ही होता है । सत्य की ओर ले जाने वाला सबसे उत्तम होता है । उसका सारा कार्य और चिंतन उत्तमोत्तम होता है । सत्य का साक्षात्कार जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है । हम मोक्ष के संदर्भ को एक बार छोड़ दें । लौकिक संदर्भ को भी समझें । मनुष्य हजारों वर्षों से विकास की यात्रा कर रहा है । विकास पहले भी होता रहा है | आज कुछ लोग कहते हैं कि विज्ञान के कारण अधिक विकास हो गया । पर यह विश्वास कैसे हुआ ? अज्ञान से तो लाभ नहीं हुआ ? ज्ञान से हुआ है, सत्य को जानने से हुआ है । सत्य का अर्थ है नियम को जानना । जब नियम का पता नहीं होता, तो भ्रान्ति पैदा होती है । परमार्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only ४३ www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
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